________________
अहिंसा तत्त्व दर्शन
स्थापना को छोड़ दें। द्रव्य-धर्म के तीन भेद हैं-ज्ञ-शहीर, भव्य शरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्-व्यतिरिक्त के तीन भेद हैं-सचित्त, अचित्त, और मिश्र जीवच्छरीर का जो लक्षण है उपयोग, वह सचित्त द्रव्य-धर्म है। अचित्त का जो स्वभाव है, वह अचित्त द्रव्य-धर्म है। मिश्र द्रव्य-दूध-पानी का जो स्वभाव है, वह मिश्र द्रव्य-धर्म है। गृहस्थों का जो कुल, नगर, ग्राम आदि का धर्म है अथवा गृहस्थों का गृहस्थों को दान-धर्म है, वह द्रव्य-धर्म है।
भाव-धर्म के दो भेद होते हैं-(१) लौकिक, (२) लोकोत्तर । लौकिक के दो भेद हैं-(१) गृहस्थ-धर्म, (२) पाखण्ड-धर्म। लोकोत्तर धर्म के तीन भेद हैंज्ञान, दर्शन, चारित्र। यह धर्म ही परमार्थ दृष्टि से धर्म है। यही भाव-समाधि और भाव-मार्ग है। धर्म के दो भेद हैं-श्रुत और चारित्र अथवा इसके क्षमा आदि दस भेद हैं। भाव-समाधि का रूप भी ऐसा ही है। वास्तव में ज्ञान, दर्शन, चरित्रात्मक मुक्ति-मार्ग ही भाव-धर्म है।'
पुण्य शब्द पर भी निक्षेप करते-करते हमें लौकिक पुण्य, कुप्रावचनिक पुण्य और लोकोत्तर पुण्य ऐसी रचना करनी होगी। धर्म और पुण्य का ही क्या, जितने भी सार्थक शब्द हैं, उन सबके लिए यह प्रक्रिया है। इसके आधार पर लौकिक आवश्यक, लौकिक सामायिक; लौकिक मंगल, लौकिक विनय, लौकिक सेवा, लौकिक उपकार, लौकिक दान, लौकिक दया आदि शब्द-भण्डार की सृष्टि होती है और ये सब विशेषण-शब्द अपना अभिप्रेत अर्थ बताने की पूरी क्षमता रखते हैं।
विश्लेषण का मार्ग
स्याद्वादी के लिए-सत्यमार्गी के लिए यह आवश्यक है कि वह स्याद्वाद के सहारे वस्तु-स्थिति का विश्लेषण करे। यह कूटनीति या उलझन का मार्ग नहीं होता किन्तु यह दृष्टि को उदार बनाने वाला मार्ग है। परिव्राजक शुकदेव ने मुनि थावच्चा-पुत्र को पूछा-कुलथा भक्ष्य है या अभक्ष्य ? मुनि ने कहा-भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी। कुथला के दो अर्थ होते हैं-एक अनाज और दूसरा स्त्री। स्त्री कुलथा अभक्ष्य है। अनाज कुलथा सचित्त और अचित्त दो प्रकार का होता है। सचित्त कुलथा अभक्ष्य है । अचित्त कुलथा भी दो प्रकार होता है-पाचित और अपाचित। अपाचित अभक्ष्य है। पाचित दो प्रकार होता है- अनेषणीय और एषणीय अनेषणीय अभक्ष्य है। एषणीय दो प्रकार का होता है-अलब्ध और लब्ध । लब्ध भक्ष्य है।'
१. ज्ञाता ५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org