________________
अहिंसा के फलितार्थ
१. अहिंसा का अर्थ प्राणों का विच्छेद न करना, इतना ही नहीं उसका अर्थ है-मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों को शुद्ध रखना।।
२. जीव नहीं मरे, बच गए-यह व्यावहारिक अहिंसा है, अहिंसा का प्रासंगिक परिणाम है । हिंसा के दोष से हिंसक की आत्मा बची—यह वास्तविक अहिंसा है।
३. हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध हिंसक और अहिंसक से होता है, मारे जाने वाले और न मारे जाने वाले प्राणी से नहीं।
४. निवृत्ति अहिंसा है। ___५. प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है, उनमें जो राग-द्वेष-रहित होती है, वह अहिंसा और राग-द्वेष-सहित होती है, वह हिंसा है। दूसरे सजीव या निर्जीव पदार्थ केवल अहिंसा के निमित्तमात्र बनते हैं। इसके आधार पर ही हिंसा के द्रव्य-भावरूप भेद किए हैं। द्रव्य-हिंसा का अर्थ है-केवल प्राणों का वियोग होना । भावहिंसा का अर्थ है-आत्मा के अशुभ परिणाम यानी राग-द्वेष-प्रमादात्मक प्रवृत्ति । ___ क्योंकि हिंसा की परिभाषा में प्राण-वियोजन का स्थान व्यावहारिक और राग-द्वेष-युक्त भावना का स्थान नैश्चयिक है । हिंसक वही कहा जा सकता है, जो रागादि दोष सहित प्रवत्ति से प्राणों का विच्छेद करता है। कष्ट पहुंचाता है या निर्जीव पदार्थों पर भी अपनी प्रमादात्मक प्रवृत्ति करता है । जहां प्राणियों की घात होती है, वहां-राग-द्वेष-रहित भावना कैसे हो सकती है ? इस प्रश्न का निर्णय हमें यों कर लेना चाहिए कि उन संयमी पुरुषों की न तो जीव-हिंसा की भावना ही है और न वे इस प्रकार की क्रिया ही करते हैं तथापि देहधारी होने के कारण उनके द्वारा जो हिंसा हो जाती है, वहां उनकी भावना का राग-द्वेष से कोई सम्बन्ध नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org