________________
आचार्य भिक्षु कौन थे?
आज से लगभग पन्द्रह वर्ष पहले मैंने 'अहिंसा' नामक एक पुस्तक लिखी थी। उसमें तेरापंथ के अहिंसा विषयक दृष्टि-बिन्दु का थोड़े में विवेचन है। वह पुस्तक जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा चाड़वास द्वारा प्रकाशित हुई । पूनमचन्दजी सिंधी ने महात्मा गांधी के निजी सचिव प्यारेलालजी को तेरापंथ साहित्य की कई पुस्तकें दीं। उनमें एक वह भी थी। महात्माजी ने उनमें से कितनी पुस्तकें पढ़ीं, यह पता नहीं। दो पुस्तकें पढ़ीं, यह निश्चित है। उनमें एक है आचार्यश्री तुलसी की 'अशान्त विश्व को शान्ति का संदेश' और दूसरी है 'अहिंसा'। इन्हें केवल पढ़ा ही नहीं, पढ़ने के साथ-साथ वे अपने विचार अंकित भी करते गए ! 'अहिंसा' (पृ० १६) में महात्माजी ने लिखा-'आचार्य भिक्षु कौन थे ?' इस जिज्ञासा का सम्बन्ध स्थूल शरीरधारी भिक्षु से नहीं किन्तु अहिंसा के सूक्ष्मान्वेषी आचार्य भिक्षु से था।
आचार्य भिक्षु अहिंसा के अद्वितीय भाष्यकार हुए हैं। अहिंसा के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने जिस कुशाग्रता के साथ अनुसंधान किया, वह अहिंसा जगत् के लिए गौरव की बात है। उनके सफल मन्थन से निकले रत्न आज भी छिपे पड़े हैं और यही कारण है, कई व्यक्ति मूल तक पहुंचे बिना उसकी बाहरी झांकी से ही संदिग्ध हुए हैं। उन्हें समझना चाहिए कि समुद्र का रूप यही नहीं है, जो ऊपर से दीख रहा है। वह रत्नाकर है, ऊपर से भले ही शैवाल का पुंज दीखे। __ हमारे असंख्य क्षेत्रों में असंख्य आचार्य हुए हैं। उनकी हमें असंख्य देन हैं। उनसे असंख्य दृष्टियाँ हमें मिली हैं। जिस समय जिन आचार्यों को जो त्रुटियां लगीं, उन्हीं पर उन्होंने प्रमुख प्रहार किया। इसका अर्थ यही नहीं होता कि दूसरी दृष्टियां एकान्ततः सही नहीं हैं। हम उनके दृष्टि-बिन्दुओं की उपज, उसके साधन और आकार-प्रकारों को समझे बिना उनकी मौलिकता तक नहीं पहुंच सकते। यही कारण है कि हम एक-दूसरे के अपवाद-प्रतिवाद में लग जाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org