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अहिंसा तत्त्व दर्शन
सांसारिक बन्धनों को भी धर्म कहते हैं।'
-~-'पारलौकिक धर्म को मोक्ष-धर्म अथवा सिर्फ और व्यावहारिक धर्म अथवा केवल नीति को केवलधर्म कहा करते हैं। महाभारत में धर्म शब्द अनेक स्थानों पर आया है और जिस स्थान में कहा गया है कि किसी को कोई काम करना धर्म-संगत है, उस स्थान में धर्म से कर्तव्य-शास्त्र अथवा तत्कालीन समाजव्यवस्था शास्त्र का ही अर्थ पाया जाता है तथा जिस स्थान में पारलौकिक कल्याण के मार्ग बतलाने का प्रसंग आया है, उस स्थान पर अर्थात शान्तिपर्व के उत्तरार्द्ध में मोक्षधर्म इस विशिष्ट शब्द की योजना की गई है।' ___ 'जैन धर्म और वर्ण-व्यवस्था' (पृ० ११) में पंडित फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ने लिखा है -'धर्म शब्द मुख्यतया दो अर्थों में व्यवहृत होता है-एक व्यक्ति के जीवन-संशोधन के अर्थ में, जिसे हम आत्म-धर्म कहते हैं और दूसरा समाज-कर्तव्य के अर्थ में । मनुस्मृतिकार ने इन दोनों अर्थों में धर्म शब्द का उल्लेख किया है। वे समाज-कर्तव्य को वर्ण-धर्म और दूसरे को सामान्य धर्म कहते हैं।'
किस्तूरसावजी जैन ने धर्म के दो रूप बताते हुए लिखा है-'कर्तव्य का ही दूसरा नाम धर्म है। धर्म दो प्रकार का है-एक को मोक्ष-धर्म या निश्चय-धर्म कहते हैं और दूसरे को व्यवहार-धर्म या श्रावक-धर्म कह सकते हैं। पहले धर्म का आदर्श विशिष्ट ध्येय या स्वाभाविक पद की प्राप्ति है । दूसरे का आदर्श यह है कि हमें संसार में क्या करना चाहिए व हम क्या कर सकते हैं। समाज में हमारा स्थान क्या है व हमें अपने उत्तरदायित्व को किस तरह निभाना चाहिए।'
डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने धर्म शब्द के अनेक अर्थ-प्रयोग बताते हुए लिखा है-'इस तरह के रीति-रिवाज, जो सामाजिक या राजकीय कानून की हैसियत रखते हैं, बहुत तरह के हो सकते हैं, जिन्हें देश-धर्म, कुल-धर्म कहा गया है। पेशेवर लोगों के संगठन को उस समय श्रेणी और युग भी कहते थे और उनके व्यवहार श्रेणी-धर्म या युग-धर्म कहलाते थे। मनु और याज्ञवलक्य के धर्म-शास्त्रों में एवं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजा को हिदायत दी गई है कि वह इस तरह के अलग-अलग धर्मों या रिवाज में आने वाले अमल दस्तूरों को मान्यता दे । धर्म शब्द का यह अर्थ लगभग कानून जैसा है।'
आचार्य नागसेन ने धर्म-ध्यान की व्याख्या में धर्म शब्द के अनेक अर्थ किए हैं : १. आत्मा का निर्मोह परिणाम । २. वस्तु-स्वरूप। ३. वस्तु-याथात्म्य।
१. भगवान् महावीर और उनका संदेश, अनेकान्त वर्ष ८, अंक ६७
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