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अहिंसा तत्त्व दर्शन
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थे। उन्होंने 'हरिजन' में लिखे एक लेख में बताया है-"यदि मैं तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र को अलग-अलग कर देता। मैं शपथ के साथ कह सकता हूं कि धर्म के लिए मरने को तैयार हूं, परन्तु यह मेरा व्यक्तिगत मामला है। इसका राष्ट्र से कोई सम्बन्ध नहीं है।"
एक प्रचारक मित्र (पादरी) के प्रश्न के उत्तर में यह विचार महात्मा गांधी द्वारा प्रकट किया गया। उक्त मित्र पादरी ने प्रश्न किया था कि क्या स्वतंत्र भारत में पूर्ण धार्मिक स्तंत्रता होगी? और क्या धर्म-राष्ट्र आपके स्वास्थ्य, यातायात, विदेश सम्बन्धी मुद्रा आदि अनेक बातों की देखभाल करेगा और क्या मेरे या आपके धर्म की देखभाल नहीं करेगा?
धर्म शब्द के प्रयोगों की जटिलता के कारण ही मोक्ष-धर्म का लक्षण लोकधर्म से भिन्न करना पड़ा। थोड़े में वह है-आत्मा का वीतराग-भाव या भावविशुद्धि।
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