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अहिंसा तत्त्व दर्शन
'कई व्यक्ति धान्य पकाने के लिए अन्य से पकवाने के लिए, दीपक जलाने और बुझाने के लिए अग्निकाय की हिंसा करते हैं।"
'अनाज साफ करने के लिए छाज फटककर, पंखे से हवा लेकर, बीजने से बींजकर, खुशी आदि प्रकट करने के लिए ताली बजाकर आदि-आदि कारणों से वायुकाय की हिंसा करते हैं।' _ 'घर बनाने के लिए, म्यान बनाने के लिए, खाने के लिए भोजन तैयार करने के लिए, पर्यक, बाजोट-फलक आदि बनाने के लिए, मूसल-ऊखल बनाने के लिए, तंत्री, तार, वाद्य-यंत्र, वितत, पड़हादि बनाने के लिए, अन्य वाद्य-यंत्रों के लिए, वाहन, शकट, कण्डप, भक, तोरण, पक्षियों के स्थान, देवालय, जालियों के लिए अर्धचन्द्र, वारशाक, चन्द्रशाला वेदिका, पिढी, नौका, चंगेरी, खंटी, सभा, प्रपा, डिब्बे, माला, विलेपन, वस्त्र, रथ, हल, शिविका सांग्रामिक, रथ, गाड़ी, अट्टालक, नगरद्वार, गोपुर, यंत्र, शूल, लाठी, बन्दूक, शतधनी आदि-आदि बनाने के लिए वनस्पति की हिंसा करते हैं।
'कई व्यक्ति क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति-अरति, शोक के लिए स्त्री, पुरुष, नपुंसक के लिए, जीवितव्य की कांक्षा के लिए, धर्म-निमित्त, स्ववश या परवशता से, प्रयोजन से या बिना प्रयोजन ही त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करते हैं।"
'कई व्यक्ति अर्थ (धन) के लिए, धर्म के लिए. काम-भोग के लिए अथवा अर्थ धर्म और काम-तीनों के लिए हिंसा करते हैं।"
अज्ञानवश हिंसा
'अज्ञानवश की हुई हिंसा भी हिंसा होती है। बहुत सारे व्यक्ति हिंसा के स्वरूप और परिणाम को जानते हुए हिंसा करते हैं ।
'जो जीवों के स्वरूप को जानने में कुशल हैं, वे ही अहिंसा के स्वरूप को जानने में कुशल हैं और जो अहिंसा का स्वरूप जानने में कुशल हैं, वे ही जीवों का स्वरूप जानने में कुशल हैं।"
१. प्रश्नव्याकरण, ११८ २. वही, १९ ३. वही, १११० ४. वही, ११११ ५. वही, १११२ ६. वही, १।१३ ७. आचारांग: जे दीहलोगसत्थस्स खेयन्ने, से असत्थस्स खेयन्ने ।
जे असत्थस्स खेयन्ले, से दीहलोगसत्थस्स खेयन्ने ।
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