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अहिंसा तत्त्व दर्शन
को दण्ड देने वाले होते हैं। वे निर्दयी जीव अपने और दूसरों के भोजनार्थ शालि, मंग, गेहूं आदि अन्नों को पकाकर इन प्राणियों को बिना ही अपराध दण्ड देते हैं। कई निर्दय व्यक्ति तीतर, बटेर तथा बतख आदि पक्षियों को बिना ही अपराध मारते फिरते हैं।
___ कई व्यक्ति वन्दना, पूजा, मान प्राप्त करने लिए, जन्म-मरण से छूटने के लिए या दुःखों को रोकने के लिए नाना प्रकार से हिंसा करते हैं।
त्रस जीवों की हिंसा के निमित्त
कुछ व्यक्ति त्रस जीवों के शरीर के लिए उनका वध करते हैं। कई उनके चमड़े के लिए, मांस के लिए, लोही के लिए, हृदय के लिए, पींछी के लिए, पूंछ के लिए, बाल के लिए, सींग के लिए, दांत के लिए, डाढ के लिए, नख के लिए, आंख के लिए, हड्डी के लिए, अस्थि मज्जा के लिए—आदि अनेक प्रयोजनों से त्रस जीवों की हिंसा करते हैं और कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन ही त्रस जीवों की हिंसा करते हैं।
कई रस-लोलुप व्यक्ति मधु के लिए मधुमक्खियों को मारते हैं, शारीरिक दुविधा मिटाने के लिए खटमल आदि को मारते हैं, विभूषा बढ़ाने वाले रेशमी वस्त्र बनाने के लिए कीड़ों की घात करते हैं । इस प्रकार अज्ञानी जीव अनेक कारणों से त्रस जीवों की हिंसा करते हैं।'
स्थावर जीवों की हिंसा के निमित्त
कृषि (खेती) आदि के लिए, बावड़ी, कुआं, सरोवर, तालाब, भित्ति, चिता, वेदिका, आराम, स्तूप, प्रकार, द्वार, गोपुर, अट्टालक, चरिक (आठ हाथ प्रमाण का मार्ग), पुल, प्रासाद, विकल्प, भवन, घर, शयन, लयन दूकान, प्रतिमा, देवालय, चित्रशाला, प्रपा, आयतन, परिव्राजक का निवास-स्थान, भूमिगृह, मण्डप, घड़ा आदि बर्तनों के लिए, विविध कारणों से प्रेरित होकर मन्दबुद्धि वाले व्यक्ति पृथ्वीकाय की हिंसा करते हैं।
स्नान करने के लिए, पानी पाने के लिए, भोजन बनाने के लिए, वस्त्र धोने के लिए और शुचि आदि करने के लिए पानी के जीवों की हिंसा करते हैं।" १. सूत्रकृतांग २।२।३५ २. आचारांग ११११४० ३. प्रश्नव्याकरण १३ ४. वही, १६ ५. वही, १७
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