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सुखवादी दृष्टिकोण __वर्तमान दृष्टिकोण मुख्यतया प्रत्यक्षपरक है। आज के अधिकांश आस्तिक और नास्तिक, आत्मवादी या अनात्मवादी के दृष्टिकोण में कोई भेद नहीं लगता। दोनों दृष्टियां सिर्फ वर्तमान को सुखी बनाने तक सीमित हैं, इसलिए सब व्यावहारिक दर्शन चाहते हैं। आध्यात्मिक दर्शन उन्हें अव्यावहारिक जैसा लगता है। वे प्रत्येक वस्तु को समाज की उपयोगिता की दृष्टि से आंकते हैं। उनकी दृष्टि का एकमात्र केन्द्र समाज की वर्तमान सुख-सुविधा है। वह जिससे बढ़े, वह दर्शन अच्छा और जिससे वह न बढ़े, वह दर्शन किस काम का है ? यह दृष्टिकोण रहते उन्हें अध्यात्म-दर्शन की परिभाषाएं अटपटी लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आत्मवादी दृष्टिकोण
(१) त्राण : लोकवाणी या व्यवहार की भाषा में जहां माता-पिता और सगेसम्बन्धी त्राण माने जाते हैं, वहां अध्यात्म-वाणी उन्हें त्राण नहीं मानने की सीख देती है। देखिए
नालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा,
तुमंपि तेसिं नालं, ताणाए वा सरणाए वा ।' -पारिवारिक तुझे त्राण नहीं दे सकते । तू भी उन्हें त्राण नहीं दे सकता।
वित्तं पसवो य नाइओ, ते बाले सरणं ति मन्नाइ।
एते मम तेसु वि अहं, नो ताणं सरणं न विज्जइ ॥२ --अज्ञानी व्यक्ति धन, पशु और ज्ञाति को शरण मानता है किन्तु वे त्राण
१. आचारांग श२।७७ २. सूत्रकृतांग १२।३।१६
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