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अहिंसा तत्त्व दर्शन
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सूक्ष्मदृष्टि से देखने पर यह निर्णय होता है कि जो काम हम करते हैं, वह यदि पूर्वोक्त भावनाओं से मिश्रित है तो उसमें आसक्ति रहेगी ही - चाहे अधिक मात्रा में, चाहे कम मात्रा में, चाहे व्यक्त रूप में, चाहे अव्यक्त रूप में । अधिक आसक्ति वाला अहंभावना से लिप्त रहता है और वह उससे मुड़ना भी नहीं चाहता । किन्तु कम आसक्ति वाला यह समझता है कि मैं जो कुछ भौतिक सुखवर्धक काम करता हूं, वह मुझे करना पड़ता है क्योंकि मैं अभी तक बन्धन से छुटकारा नहीं पा सका हूं । इसका तत्त्व यही है कि जो कार्य असंयम को पुष्ट करने वाला अर्थात् भोगी - जीवन का सहायक है, वह चाहे कैसी भी भावना से क्यों न किया जाए, उसमें हिंसा तो रहेगी ही । भोगी - जीवन का अर्थ सिर्फ अब्रह्मचारी जीवन ही नहीं है । जो मनुष्य अपने शरीर को सुख देने के लिए या उसे टिकाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा करता है, उसका जीवन भोगी - जीवन कहलाता है | यह निश्चित रूप से जान लेना चाहिए कि निष्कामता का सम्बन्ध अहिंसात्मक कार्यों से ही है । हिंसात्मक कार्यों में निष्कामता का प्रयोग नहीं हो सकता । निष्कामता अहिंसा की उपासना करने का साधन है | अहिंसा का अनुशीलन किसी प्रकार के भौतिक सुखों के फल की आशा रखे बिना ही करना चाहिए । यही निष्कामता का सच्चा प्रयोग है ।
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