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अहिंसा तत्त्व दर्शन एक नहीं हो सकता। एक व्यक्ति रोता भी है और हंसता भी है । रोने वाला और हंसने वाला व्यक्ति एक हो सकता है (वह भी स्थूल दृष्टि से) किन्तु रोना और हंसना एक नहीं हो सकता।" ____जीवन संकुल है—यह सच है किन्तु जीवन की प्रवृत्तियां जो भिन्न-भिन्न देशकाल में होती हैं और भिन्न-भिन्न स्वरूप वाली हैं, वे संकुल नहीं होतीं। यह उससे कम सच नहीं है। इसलिए दोनों के समन्वय की भाषा में ऐसे कहना चाहिए कि भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियों के संगम की दृष्टि से जीवन संकुल है और उनके भिन्नभिन्न स्वरूपों की दृष्टि से वह संकुल नहीं है।
जीवन की सीमाएं कृत्रिम नहीं होतीं। उसको बांटने वाली रेखाएं उसी के द्वारा खींची जाती हैं। उनमें से कुछ एक जो गम्य बनती हैं, वे शब्दों में बंध जाती हैं। उनके लौकिक और आध्यात्मिक जो भेद होते हैं, उनके पीछे दो दार्शनिक विचार हैं : (१) संसार, (२) मुक्त । ___ संसार का साधन (संसार की ओर ले जाने वाली प्रवृत्ति) लौकिक होती है और मुक्ति का साधन (मोक्ष की ओर ले जाने वाली प्रवृत्ति) आध्यात्मिक । संसार और मुक्ति की कल्पनाएं जिन्हें मान्य हैं, उन्हें संसार और मुक्ति के साधन भी मान्य होने चाहिए। संसार और मुक्ति का स्वरूप एक नहीं है, इसलिए लौकिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति का स्वरूप भी एक नहीं होना चाहिए । व्यक्ति की दृष्टि से लौकिक जीवन की समाप्ति और बाद आध्यात्मिक जीवन का प्रारंभ होता है-ऐसा नहीं जान पड़ता। किन्तु प्रवत्ति के स्वरूप की दृष्टि से ऐसा होता भी है । लौकिक जीवन की प्रवृत्ति समाप्त होने पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति शुरू होती है और आध्यात्मिक प्रवृत्ति समाप्त होने पर लौकिक प्रवृत्ति । दोनों के आदि-अन्त अपने आप में समाए हुए हैं। दोनों का मिश्रण कहीं भी नहीं होता। साध्यों में मिश्रण नहीं होता वे व्यावृत होते हैं, तब साधनों की व्यावृति कैसे नहीं होगी? हमें वस्त की कोटि का निर्णय उसके स्वरूप-विवेक द्वारा करना होगा, उसके लिए व्यक्ति को तोड़ना आवश्यक नहीं होता ।
सामाजिक-दृष्टि और मोक्ष दृष्टि
समाज की भूमिका में अहिंसा का विकास सामाजिक उपयोगिता के स्तर पर हुआ। अध्यात्म की भूमिका में उसका विकास हुआ समाज-निरपेक्ष भूमिका पर, आत्म-विकास की भित्ति पर । उसका लक्ष्य था देह-मुक्ति । इसलिए वह प्राणी मात्र को न मानने की मर्यादा से भी आगे बढ़ी। सूक्ष्म विचारणा में अविरति और क्रिया के सिद्धान्त तक पहुंच गई। हिंसा की विरति नहीं करने वाला हिंसा नहीं
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