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अहिसा तत्त्व दर्शन
से प्रमुख साधु ने कसाई को सम्बोधित करते हुए कहा-'भाई ! इन बकरों को भी मौत से प्यार नहीं, यह तम जानते हो। इनको भी कष्ट होता है, पीड़ा होती है, तुम्हें मालूम है। खैर ! इसे जाने दो। इनको मारने से तुम्हारी आत्मा मलिन होगी। उसका परिणाम दूसरा कौन भोगेगा?'
मुनि का उपदेश सुन कसाई का हृदय बदल गया। उसने उसी समय बकरों को मारने का त्याग कर दिया और आजीवन निरपराध त्रस जीवों की हिंसा का भी प्रत्याख्यान किया । कसाई अहिंसक- स्थूल-हिंसा-त्यागी बन गया। ___ यह दूसरा कसाई का दृष्टान्त है। इसमें भी साधु के उपदेश से दो बातें हुईंएक तो कसाई हिंसा से बचा और दूसरी, उसके साथ-साथ बकरे मौत से बचे। अब सोचना यह है कि इनमें आध्यात्मिक धर्म कौन-सा है ? कसाई हिंसा से बचा, वह या बकरे बचे, वह ?
चोर चोरी के पाप से बचे और कसाई हिंसा से। यह उनकी आत्मशुद्धि हुई, इसलिए यह निःसन्देह आध्यात्मिक धर्म है। चोरी और हिंसा के त्याग से उन्हें धर्म हुआ, किन्तु इन दोनों के प्रसंग में जो दो कार्य और हुए-धन और बकरे बचे, उनमें आत्मशोधन का कोई प्रसंग नहीं। इसलिए उनके कारण धर्म कैसे हो सकता है ? यदि कोई उन्हें भी आध्यात्मिक धर्म माने तो उसे तीसरे दृष्टान्त पर ध्यान देना होगा।
३. अर्द्धरात्रि का समय था । बाजार के बीच एक दूकान में तीन साधु स्वाध्याय कर रहे थे। संयोगवश तीन व्यक्ति उस समय उधर से निकले । साधुओं ने उन्हें देखा और पूछा-'भाई ! तुम कौन हो? इस घोरबेला में कहां जा रहे हो ?' यह प्रश्न उनके लिए एक भय था। वे मन ही मन सकुचाए और उन्होंने देखने का यत्न किया कि प्रश्नकर्ता कौन है ? देखा, तब पता चला कि हमें इसका उत्तर एक साधु को देना है- सच कहें या झूठ ? आखिर सोचा–साधु सत्यमूर्ति हैं। इनके सामने झूठ बोलना ठीक नहीं । कहते संकोच होता है, न कहें यह भी ठीक नहीं क्योंकि इससे उनकी अवज्ञा होती है। यह सोच वे बोले-'महाराज ! क्या कहें ? आदत की लाचारी है, हम पापी जीव हैं, वेश्या के पास जा रहे हैं।' साधु बोले- 'तुम कुलीन दीखते हो, सच बोलते हो, फिर भी ऐसा अनार्य कर्म करते हो, तुम्हें यह शोभा नहीं देता। विषय-सेवन से तुम्हारी वासना नहीं मिटेगी । घी की आहुति से आग बुझती नहीं ।'
साधु का उपदेश हृदय तक पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि उन्होंने तत्काल उस जघन्य वृत्ति का प्रत्याख्यान कर डाला। वह वेश्या बहुत देर तक उनकी बाट देखती रही, आखिर वे आए ही नहीं, तब उनकी खोज में चल पड़ी और घूमती
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