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अहिंसा तत्त्व दर्शन
५. दूसरा व्यक्ति और वस्तु किसी तीसरे की वृत्ति को अपवित्र या पवित्र नहीं बनाते, केवल निमित्त बन सकते हैं । अपवित्रता और पवित्रता अपने ही अर्जित संस्कारों के परिणाम हैं और उन्हीं से कर्म-बन्धन होता है । यह सब सोलह आना सही है । किन्तु किसी व्यक्ति या वस्तु के साथ हमारी क्रिया या भावना का धागा जुड़ता है, वह किस रूप में और किस संस्कार से भावित होकर जुड़ता है, यह विचारार्ह है। कार्य का मूल्यांकन इसी पर होगा ।
६. ( क ) पवित्र भावना से पुत्र का मांस खाने वाला निर्दोष है— एक ऐसा अभिमत हैं ।
(ख) दुःख - मोचन के लिए छटपटाते को करुणार्द्र होकर मार डालने की भावना भी पवित्र मानी जाती रही है ।
(ग) अनासक्त भाव से केवल प्रजा की उत्पत्ति के लिए अब्रह्मचर्य - सेवन भी बहुतों द्वारा पवित्र माना जाता है ।
(घ) आततायी को मारने में कोई दोष नहीं - यह मान्यता भी नई नहीं
है।
इस प्रकार पवित्रता की विविध कल्पनाएं हैं। अपवित्रता के पीछे भी ऐसा ही कल्पनाओं का जाल गुंथा हुआ है । अगर हम वृत्ति को ही एकमात्र स्थान दें, उनके वर्तन के आधारभूत वस्तु और व्यक्ति को भुला बैठें - यह घोर ऐकान्तिकता होगी ।
७. रोटी एक वस्तु है । वह परिग्रह नहीं है और न वह किसी का भलाबुरा करने वाली है किन्तु व्यक्ति की वृत्ति से जुड़कर वह भी परिग्रह बन जाती है । स्थूल दृष्टि से यही कहा जाएगा कि रोटी जीवन निर्वाह की अनिवार्य अपेक्षा है | वह परिग्रह क्यों ? उस पर भला क्या ममत्व होगा ? किन्तु सूक्ष्म विचार की बात कुछ और ही होगी । रोटी खाने के स्थूल संस्कार जीवन निर्वाह के भले हों, पर संस्कारों की शृंखला इतने में पूर्ण नहीं होती । रोटी रखने और खाने की पृष्ठभूमि में अविरति और असंयम के अनेक सूक्ष्म संस्कार छिपे हुए होते हैं । वे वृत्तियों को वस्तु ग्रहण के लिए उत्तेजित किए रहते हैं । इसी अविरति की स्थिति में खानपान और अविरतिमय आदान-प्रदान ममत्व के सूक्ष्म-संस्कारों के पोषक ही रहते हैं, निवर्तक नहीं । सर्वविरति विधिपूर्वक भोजन कर सात-आठ कर्मों की निर्जरा करता है । अविरति का भोजन कर्म-बन्ध का हेतु है ।
८. एक परिग्रही का परिग्रह दूसरे परिग्रही के पास जाता है । जिसके पास परिग्रह है, उसका परिग्रह, जिसके पास नहीं है, उसके पास जाता है या जिसके पास अधिक परिग्रह है, वह कम वाले के पास जाता है । इससे सामाजिक आवश्यकता की आंशिक पूर्ति अवश्य हो जाती है, दाता की वृत्ति अपरिग्रह की
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