________________
६६
अहिसा तत्त्व दर्शन
असत-प्रवृत्ति के द्वारा प्राण-वध किया जाता है या हो जाता है, वह भी हिंसा है।
ऊपर की कुछ पंक्तियों में हिंसा का स्वरूप बताया गया है । अहिंसा हिंसा का प्रतिपक्ष है । जो असत्-प्रवृत्ति का निरोध है, सत्-प्रवृत्ति है, वह अहिंसा है।
वस्तुओं का स्वरूप देखने के लिए जैन अचार्यों ने निश्चय और व्यवहार, इन दो दृष्टियों का उपयोग किया है। व्यवहार-दृष्टि वस्तु का बाहरी स्वरूप देखती है और निश्चय-दृष्टि उसका आन्तरिक स्वरूप । व्यवहार दृष्टि में लौकिक व्यवहार की प्रमुखता होती है और निश्चय-दृष्टि में वस्तु-स्थिति की। व्यवहार-दृष्टि के अनुसार प्राण-वध हिंसा और प्राण-वध नहीं होता वह अहिंसा है। निश्चयदृष्टि के अनुसार असत्-प्रवृत्ति यानी राग-द्वेष-प्रमादात्मक प्रवृत्ति हिंसा है और सत्-प्रवृत्ति अहिंसा है। इन (दृष्टियों) के आधार पर हिंसा-अहिंसा की चतुर्भगी बनती है। जैसे
१. द्रव्य-हिंसा और भाव-हिंसा। २. द्रव्य-हिंसा और भाव-अहिंसा । ३. द्रव्य-अहिंसा और भाव-हिंसा। ४. द्रव्य-अहिंसा और भाव-अहिंसा।
राग-द्वेष-वश होने वाला प्राण-वध द्रव्य-हिंसा और भाव-हिंसा है। जैसेएक शिकारी हिरण को मारता है, यह द्रव्य यानी व्यवहार में भी हिंसा है, क्योंकि वह हिरण के प्राण लूटता है और भाव यानी वास्तव में हिंसा है, क्योंकि शिकार करने में उसकी प्रवृत्ति असत् होती है। राग-द्वेष के बिना होने वाला प्राण-वध द्रव्य-हिंसा और भाव-अहिंसा है। जैसे--एक संयमी पुरुष सावधानीपूर्वक चलताफिरता है तथा आवश्यक दैहिक क्रियाएं करता है, उसके द्वारा अशक्य परिहार कोटि का प्राण-वध हो जाता है, वह व्यवहार में हिंसा है क्योंकि वह प्राणी की मृत्यु का निमित्त बनता है और वास्तव में अहिंसा है, हिंसा नहीं है, क्योंकि वहां उसकी प्रवृत्ति राग-द्वेषात्मक नहीं होती। राग-द्वेषयुक्त विचार से अप्राणी पर घात या प्रहार किया जाता है, वह द्रव्य-अहिंसा और भाव-हिंसा है । जैसे-कोई व्यक्ति धुंधले प्रकाश में रस्सी को सांप समझकर उस पर प्रहार करता है, वह व्यवहार में अहिंसा है, क्योंकि उस क्रिया में प्राण-वध नहीं होता और निश्चय में हिंसा है, कारण कि वहां मारने की प्रवृत्ति द्वेषात्मक है। जहां न राग-द्वेषात्मक प्रवृत्ति होती है और न प्राण-वध होता है, वह सर्व संवर रूप अवस्था द्रव्य-अहिंसा और भाव-अहिंसा है। यह अवस्था दैहिक और मानस क्रिया से निवृत्त तथा समाधि प्राप्त योगियों की होती है। भाव-अहिंसा की पूर्णता संयम जीवन में प्राप्त
१. जैन सिद्धान्त दीपिका ७४१५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org