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अहिंसा तत्त्व दर्शन
अवश्य होती है, इसलिए वह क्रिया की व्यावहारिक कसौटी नहीं बन सकती । व्यवहार-दृष्टि के परिणाम तथा निश्चय दृष्टि के प्रासंगिक परिणाम यद्यपि स्पष्ट होते हैं, उन्हें जानने के लिए नियम-निर्धारण की आवश्यकता नहीं होती । किन्तु क्रिया के स्वरूप के साथ उनकी एकरूपता नहीं होती, इसलिए उनमें क्रिया की और कोटि का निर्धारण करने की क्षमता नहीं होती ।
क्रिया हेतु के अनुकूल भी हो सकती है और प्रतिकूल भी । हेतु और क्रिया की ऐकान्तिक और आत्यन्तिक एकरूपता नहीं होती । इसलिए वह भी कार्य की कसौटी नहीं बना सकता ।
काण्ट ने नैतिकता का मापदण्ड निश्चित करते समय निश्चय और व्यवहारदृष्टि का उपयोग करते हुए लिखा है— प्रत्येक भला हेतु भला ही आन्तरिक परिणाम उत्पन्न करता है । उसका बाह्य परिणाम भला या बुरा हो सकता है । "
नैतिकता के मापदण्ड के बारे में पश्चिमी दार्शनिकों के दो मत हैंहेतुवाद और परिणामवाद । हेतुवाद के अनुसार काम की भलाई या बुराई को देखने के लिए हमको उसके परिणाम को न देखकर उसके हेतु को देखना चाहिए । हेतु की शुद्धता पर कार्य की पवित्रता निर्भर करती है । जिस कार्य का हेतु पवित्र है, उसका फल चाहे जो कुछ हो, वह पवित्र ही कार्य है । २
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काट के इस हेतु का प्रतिपक्ष बेन्थम और जान स्टुअर्ट मिल का परिणामवाद है। उसके अनुसार सभी कार्यों के हेतु एक से ही होते हैं । अतएव हेतु की दृष्टि से न किसी काम को भला और बुरा कहा जा सकता है । चोर चोरी अपने सुख के लिए करता है, इसी प्रकार दानी पुरुष भी दान सुख प्राप्ति के निमित्त करता है । अतएव यदि हेतु पर विचार किया जाए तो न चोर का काम बुरा है और न दानी का भला । दोनों के काम एक ही हेतु से होने के कारण एक से ही हैं ।
परिणामवादी नैतिक आचरण की कसौटी परिणाम को मानते हैं । सुखवाद इसी का आभारी है । बेन्थम के मतानुसार प्रत्येक व्यक्ति सुख का इच्छुक है । वह उसे भला समझता है अतएव भलाई का काम वह है, जिसके द्वारा अधिक सुख मिले और बुरा काम वह है जिसके परिणामस्वरूप अधिक कष्ट मिले । सम्भवतः ऐसा कोई भी काम न होगा, जिससे कुछ सुख और दुःख दोनों ही उत्पन्न न हों। पर हमें अपेक्षाकृत सुख और दुःख को देखना है । जिस काम में सुख अधिक मिलता है और दुःख कम, वही अच्छा है ।
यही बात जान स्टुअर्ट मिल कहते हैं - 'प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है अतएव
१. नीतिशास्त्र, पृ० १६५ २. वही, पृ० १६६
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