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अहिंसा तत्त्व दर्शन
धर्म का मर्म समझ सकते हैं।
भगवान् महावीर का धर्म-तंत्र दो भागों में विभक्त था : १. मुनि-धर्म, २. गृहस्थ-धर्म।
मुनि-धर्म
(१) अहिंसा-प्राणातिपात की सर्वथा विरति । (२) सत्य-मृषावाद की सर्वथा विरति । (३) अचौर्य-अदत्तादान की सर्वथा विरति । (४) ब्रह्मचर्य-मैथुन की सर्वथा विरति । (५) अपरिग्रह की सर्वथा विरति ।
गृहस्थ-धर्म
(१) अहिंसा-अणुव्रत -प्राणातिपात की मर्यादित विरति । (२) सत्य-अणुव्रत-मृषावाद की मर्यादित विरति । (३) अचौर्य-अणुव्रत-चोरी की मर्यादित विरति । (४) स्वदार-संतोष-अब्रह्मचर्य का नियमन । (५) इच्छा-परिमाण-संग्रह की मर्यादा।
भगवान् महावीर ने गृहस्थ-धर्म को नैतिकता की भित्ति पर अवस्थित किया था। व्रतों के अतिचारों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि भगवान् महावीर के नैतिक निर्देश ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत मूल्यवान् हैं। उन्होंने गृहस्थ-धर्म की पृष्ठभूमि में जो नैतिक निर्देश दिए, उनकी तालिका निम्न प्रकार है। अहिंसा के संदर्भ में नैतिक निर्देश
धार्मिक गृहस्थ निम्न निर्दिष्ट आचरण न करे : (१) बन्ध-अपने आश्रित पशुओं तथा मनुष्यों को बन्धन में डालना। (२) वध-अपने आश्रित पशुओं तथा मनुष्यों को पीटना। (३) छविच्छेद-अपने आश्रित पशुओं तथा मनुष्यों के हाथ-पैर आदि अंगों
को काटना। (४) अतिभार-पशुओं पर अधिक बोझ लादना, नौकरों से अतिकाम लेना। (५) भक्तपान-विच्छेद-अपने आश्रित पशुओं को समय पर भोजन-पानी
न देना, आश्रित मनुष्यों को समय पर भोजन-पानी या
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