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घार 51. The ascetic who ties the cloths with more than three knots or supports the ones
who does so. . The ascetic who sews the cloth with one stiching or supports the ones who does
so.
XI
The ascetic who sews the cloth with more than three stiches or supports the ones who does so. The ascetic who stiches the cloth without proper manner or supports the ones who
does so. 55. The ascetic who stiches one type of cloth with another type of cloth or supports the
ones who does so. 56. The ascetic who keeps the cloth of additional stiches more than one and a half
months with him or supports the ones who does so to him a month duration (Gurumasik) expiation comes.
विवेचन-थेगली-अग्नि की चिनगारियों से क्षत-विक्षत हो जाने पर अथवा चूहे, कुत्ते आदि द्वारा छेद कर दिए जाने पर यदि वस्त्र का शेष भाग उपयोग में आने योग्य हो तो उसमें थेगली देने की आवश्यकता होती है * तथा अन्य भी ऐसे कारण समझ लेना चाहिए। एक थेगली व तीन थेगली संबंधी विवेचन पूर्ववत् समझ लेना
चाहिए। - अविधि सीवन-वस्त्र के थेगली लगाने में सिलाई करना आवश्यक है किन्तु सिलाई में कम से कम समय और अच्छी तरह प्रतिलेखन हो सके यह ध्यान रखना चाहिए।
गाँठ लगाना- यदि कोई वस्त्र कहीं से उलझकर अथवा दबकर फट जाए और ऐसे वस्त्र की सिलाई के कर लिए सूई आदि तत्काल उपलब्ध न हो तो उस वस्त्र के दोनों किनारों को पकड़कर गाँठ लगा देनी चाहिए, ऐसे पर लगाना जघन्य एक स्थान पर तथा उत्कृष्ट तीन स्थानों पर किया जा सकता है। यदि तीन स्थानों में गाँठदेने पर भी
काम आने लायक न हो सके तो सूई आदि उपलब्ध कर उसकी सिलाई कर लेना चाहिए। किन्तु तीन से अधिक गाँठ नहीं लगानी चाहिए।
सूत्र ५० से अविधि' शब्द को यहाँ ग्रहण करके उसका यह अर्थ समझ लेना चाहिए कि गाँठ देने में भी बार दिखने अथवा प्रतिलेखन की अपेक्षा कोई अविधि न हो। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि विधिपूर्वक लगाई हुई
किसी भी गाँठ को प्रतिलेखन के लिए पुनः खोलना आवश्यक नहीं है क्योंकि वह सुप्रतिलेख्य होती है। बार-बार 4 गाँठ खोलना एवं देना अनावश्यक प्रमाद है।
वस्त्र खंड जोड़ना-गली व गाँठ के समान वस्त्रों को जोड़ने से सम्बन्धित दो (५२-५३) सूत्र है। अतः यहाँ पर भी एक सीवण और तीन सीवण का प्रसंग घटित होता है।
फालियं का अर्थ है फटे हुए। इसके दो प्रकार से अर्थ हो सकते है-१. नया ग्रहण करते समय, २. लेने के अरे बाद कभी फट जाने पर।
आचारांगसूत्र श्रु. २ अ. ५, उ. १ के अनुसार नया वस्त्र ग्रहण करते समय यदि वह चौड़ाई में कम हो अथवा कम लम्बाई के छोटे-छोटे टुकड़े हों तो चद्दर आदि के योग्य बनाने के लिए उन्हें जोड़ना पड़ता है।
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प्रथम उद्देशक
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First Lesson