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पंचम उद्देशक THE FIFTH CHAPTER
प्राथमिकी INTRODUCTION ___पाँचवें उद्देशक में साधक के लघुमासिक प्रायश्चित्त का विधान बताया गया है। साधक को घर
सचित्त वृक्ष के मूल के निकट खड़े रहने, कायोत्सर्ग करने, बैठने, सोने, आहार करने, मल-मूत्र र र त्यागने, स्वाध्याय करने, अपनी चादर आदि अन्यमती अथवा गृहस्थ से सिलाने, मर्यादा से अधिक
लम्बी चादर रखने, पलास-नीम आदि के पत्तों को अचित्त या शीत पानी से धोकर रखने, कपास र 8 आदि काटने, सचित्त रंगीन व आकर्षक दंड बनाने व रखने, वाद्य यंत्र बजाने, रजोहरण को प्रमाण से र * अधिक लम्बा रखने, रजोहरण को पाँव-सिर आदि के नीचे रखने आदि का निषेध किया गया है।
The legislation of Laghumasika expiation of a practiser has been stated in this 12 fifth chapter. The practiser has been prohibited to stay to perform Kayotsarga, to sit, to
sleep, to consume food, defecation, to study scriptures near the root of living tree, to get his shawl stitched by alien ascetic or non-believer to have the shawl beyond the mandatory length, to keep the leaves of Neem etc. after washing with living water, to harvest the cotton seeds, to keep and have the coloured stick to play the musical instruments, to keep the woolen broom beyond the required length, to keep the
Rajoharan beneath his head and legs. * वृक्षस्कन्ध के निकट ठहरने आदि का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF STAYING NEAR THE TRUNK OF A TREE 1. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलंसि ठिच्चा आलोएज्ज वा, पलोएज्ज वा, आलोएतं वा पलोएंतं * वा साइज्जइ। 22 जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलसि ठिच्चा ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा और साइज्जइ।
3. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलसि ठिच्चा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारेइ, * आहारेंतं वा साइज्जइ। 84. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलंसि ठिच्चा उच्चारं वा, पासवणं वा परिट्ठवेइ, परिठ्ठवेंतं वा १५ साइज्जड़। 45. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलसि ठिच्चा सज्झायं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। रे 6. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं उद्दिसइ, उदिसंतं वा साइज्जइ। 7. जे भिक्खू सचित्त-रुक्खमूलंसि ठिच्चा सज्झायं समुदिसइ, समुदिसंतं वा साइज्जइ।
पंचम उद्देशक
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Fifth Lesson