________________
50.
47. संपचराइय-तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं
अहीणमइरित्तं तेण परंसवीसइराइया तिण्णि मासा। परे 48. सवीसइराइय-तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं
पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअठं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं सदसराइया चत्तारि मासा। सदसराइय-चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आसोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं पंचूणा पंचमासा। पंचूण-पंच-मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअठं सहेउं सकारणं
अहीणमइरित्तं तेण परं अद्धछट्टमासा। 51. अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं
अहीणमइरित्तं तेण परं छम्मासा। पर 45. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने
से ढाई मास की प्रस्थापना होती है। 4646. ढाई मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने
से तीन मास और पाँच रात्रि की प्रस्थापना होती है। घर 47. तीन मास और पाँच रात्रि प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के
प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है,
जिसे संयुक्त करने से तीन मास और बीस रात्रि की प्रस्थापना होती है। और 48. तीन मास और बीस रात्रि प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के
प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने से चार मास दस रात्रि की प्रस्थापना होती है।
बीसवाँ उद्देशक
(359)
Twentieth Lesson