Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 445
________________ घ3 15. सचित्र भगवती सूत्र (भाग-1, 2, 3, 4) मूल्य ₹ 3,200/पंचम अंग व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ‘भगवती' के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसमें जीव, द्रव्य, पुद्गल, परमाणु, लोक आदि चारों अनुयोगों से सम्बन्धित हजारों प्रश्नोत्तर हैं। यह विशाल आगम जैन तत्त्व विद्या का महासागर है। संक्षिप्त और सुबोध अनुवाद व विवेचन के साथ यह आगम लगभग 6 भाग में पूर्ण होने की सम्भावना है। प्रथम भाग 1 से 4 शतक तक तथा 15 रंगीन चित्रों सहित प्रकाशित है। द्वितीय भाग में 5 से 7 शतक सम्पूर्ण तथा 8वें शतक का प्रथम उद्देशक लिया गया है। इस भाग में भावपूर्ण 15 रंगीन चित्र लिये गये हैं। तृतीय भाग में आठवें शतक के द्वितीय उद्देशक से नवे शतक तक सम्पूर्ण लिया गया है। इस भाग में 22 रंगीन भावपूर्ण चित्र लिये गये हैं। चतुर्थ भाग में 10 से 13वें शतक के तृतीय उद्देशक तक लिया गया है। साथ ही यह भाग विषय को स्पष्ट करने वाले 16 रंगीन भावपूर्ण चित्रों से युक्त है। 16. सचित्र जम्बद्वीप प्रज्ञप्ति सत्र मूल्य ₹ 800/यह छठा उपांग है। इस सूत्र का मुख्य विषय जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन है। जम्बूद्वीप में आये मानव क्षेत्र, पर्वत, नदियाँ, महाविदेह क्षेत्र, मेरु पर्वत तथा मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते सूर्य-चन्द्र आदि ग्रह-नक्षत्र, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी आदि के विस्तृत वर्णन के साथ ही चौदह कुलकर, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का चरित्र, सम्राट् भरत चक्रवर्ती की षट्खण्ड विजय आदि अनेक विषयों का वर्णन भी इस सूत्र में आता है। इसमें दिये रंगीन चित्र जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति, सूर्य-चन्द्र आदि ग्रहों की गति समझने में काफी उपयोगी सिद्ध होंगे। भगवान ऋषभदेव के जीवन से जुड़े सुन्दर भावपूर्ण रोचक चित्र पाठकों को मुँह बोलते प्रतीत होंगे। यह सूत्र जैन, भूगोल, खगोल और इतिहास का ज्ञानकोष है। - 17. सचित्र प्रश्नव्याकरण सूत्र मूल्य ₹ 800/प्रश्नव्याकरण अर्थात् प्रश्नों का व्याकरण, समाधान, उत्तर । मानव मन में सदा से यह प्रश्न उठता रहा है कि राग-द्वेष जनित वे कौन-से भयंकर विकार हैं जो आत्मा को मलिन करके दुर्गति में ले जाते हैं और इनसे कैसे बचा जाए? इन प्रश्नों के समाधान स्वरूप प्रश्नव्याकरण सूत्र में इनका विस्तृत वर्णन किया गया है। इन्हें आगम की भाषा में आश्रव कहते हैं। ये आश्रव हैं-हिंसा, असत्य,चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह। इन आश्रवों का स्वरूप और इनसे होने वाले दुःखों को इस सूत्र में भली-भाँति समझाया गया है। साथ ही इन पाँच आश्रवरूपी शत्रुओं से बचने हेतु अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह-ये पाँच संवर बताये गये हैं। संवर से भावित आत्मा, राग-द्वेष जनित विकारों से दूर रहती है। आश्रव-संवर वर्णन में ही समग्र जिन प्रवचन का सार आ जाता है। सचित्र आवश्यक सूत्र मूल्य ₹ 600/आगम साहित्य में आवश्यक सूत्र का प्रमुख स्थान है। जिस प्रकार वैदिकों में संध्या, बौद्धों में उपासना, मुस्लिमों में नमाज, सिखों में अरदास और ईसाइयों में प्रार्थना का स्थान है, उसी प्रकार श्रमण परम्परा में आवश्यक-साधना का स्थान है। साधक के लिए आवश्यक रूप से करणीय, आराधनीय होने से इस सूत्र को आवश्यक सूत्र कहा जाता है। आवश्यक सूत्र में श्रमण और श्रावक की साधना शुद्धि के छह सोपान दिये गये हैं। जिन पर क्रमशः आरोहण करने से आत्म-शुद्धि की यात्रा सम्पन्न होती है। अतः प्रत्येक जिनोपासक के लिए यह जरूरी है कि वह आवश्यक आराधना द्वारा प्रतिदिन "निशान्त और दिवसान्त" इन दोनों संध्याओं में स्वयं का आलेखन-प्रतिलेखन करे। प्रस्तुत कृति में 20 भावपूर्ण रंगीन | परिशिष्ट (371) Appendix

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