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चौदहवाँ उद्देशक THE FOURTEENTH CHAPTER
घर प्राथमिकी INTRODUCTION
प्रस्तुत उद्देशक में विस्तार के साथ पात्र के सम्बन्ध में विविध दृष्टियों से चिन्तन किया गया पर है। यहाँ पर पात्र को खरीदने, उधार लेने, पात्र परिवर्तन करने, छीनकर पात्र लेने, पात्र के हिस्सेदार जर की आज्ञा लिए बिना पात्र लेने, सामने लाया हुआ पात्र लेने, अविकलांग या समर्थ को अतिरिक्त पात्र पर देने, उपयोगी पात्र न रखने व अनुपयोगी पात्र रखने, परिषद् से निकलकर पात्र की याचना करने र तथा पात्र के लिये मासकल्प और चातुर्मास में करने आदि का निषेध है, इत्यादि प्रवृत्तियाँ करने पर - लघुचौमासी प्रायश्चित्त का विधान है।
In this present chapter various alternatives related to "Patra" have been contemplated extensively. Here in buying or borrowing of a "Patra" exchanging of Patra' brought after snatching, brought with the owners permission, accepting the Patra brought in front of him giving a Patra to a handicapped or the capable one, not to keep a fit patra but keeping an unfit one, begging a patra after relinquishing the group and prohibition of reside for a duration of one month or four months to accept Patra has been narrated and by doing such legislation there is provision of Laghu Chaumasi expiation. पात्र खरीदने आदिका तथा उन्हें ग्रहण करने का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF BUYING THE UTENSILS ETC. AND TAKING THEM पर 1. जे भिक्खू पडिग्गहं किणेइ, किणावेइ, कीयमाहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा 4 साइज्जइ। 2. जेभिक्खू पडिग्गहं पामिच्चेइ, पामिच्चावेइ, पामिच्चमाहर्ट्स देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं
- वा साइज्जइ। * 3. जेभिक्खू पडिग्गरंपरियट्टेइ, परियट्टावेइ, परियट्टियमाहटु देज्जमाणंपडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं
वा साइज्जइ। 4. जे भिक्खू पडिग्गहं अच्छेज्जं, अणिसिलै, अभिहडमाहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं
वा साइज्जइ। घरे 1. जो भिक्षु पात्र खरीदता है, खरीदवाता है, खरीदा हुआ लाकर देते हुए से लेता है अथवा लेने वाले
का समर्थन करता है।
चौदहवाँ उद्देशक
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Fourteenth Lesson