Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 411
________________ बीसवाँ उद्देशक THE TWENTIETH CHAPTER र प्राथमिकी INTRODUCTION इस उद्देशक में कपटयुक्त और निष्कपट आलोचना के लिए अनेक प्रकार के प्रायश्चित्तों का सारे विधान है। जो साधक निष्कपट आलोचना करता है उसको जितना प्रायश्चित्त करना होता है उससे और कपटयुक्त आलोचना करने वाले को एक मास अधिक प्रायश्चित्त आता है। इसमें प्रायश्चित्त स्थानों घर की आलोचना प्रायश्चित्त देने पर और उसके वहनकाल में सानुग्रह निरनुग्रह, स्थापित और प्रस्थापित अरे का स्पष्ट निरूपण किया गया है। In this chapter the laws of different types of expiations of performing the Alochana घार (self-criticism) with deceitful notion and undeceitful Alochana is described. Whatever expiation is observed by the ascetic who performs a "Undeceitful Alochana" the expiation of more than a months in comparison to that comes to the practiser who which performs a deceitful Alochana. Herein the clear-cut description of the Alochana of prohibited places and in awarding the expiation and the committed and uncommitted performance and complete practice of its observance is done in it. कपट-सहित तथा कपट-रहित आलोचकको प्रायश्चित्त देने की विधि THE METHOD OF CAUSING EXPIATION TO A DECEITFUL AND AN HONEST REPENTENT 1. जे भिक्खूमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउँचिय आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचिय आलोएमाणस्स दोमासियं। 2. जे भिक्खू दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स दो मासियं, पलिउंचय आलोएमाणस्स तेमासियं। 3. जे भिक्खू तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउँचिय आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं। 34. जे भिक्खू चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, पलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं। 15. जे भिक्खू पंचमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचिय आलोएमाणस्स छम्मासियं। तेणं परं पलिउंचिए वा, अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा। 16. जेभिक्खूबहुसो विमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अपलिउँचय आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचिय आलोएमाणस्स दो मासियं। बीसवाँ उद्देशक (337) Nineteenth Lesson

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