Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 414
________________ इसके उपरांत मायासहित या मायारहित आलोचना करने पर भी वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 11. जो भिक्षु मासिक यावत् पंचमासिक इन परिहारस्थानों में से किसी परिहार स्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया - रहित आलोचना करने पर आसेवित परिहार स्थान के अनुसार मासिक यावत् पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया - सहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार द्विमासिक यावत् षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसके उपरांत माया-सहित या माया-रहित आलोचना करने पर भी यही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 12. जो भिक्षु मासिक यावत् पंचमासिक इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की अनेक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार मासिक यावत् पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया - सहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार द्विमासिक यावत् षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसके उपरान्त माया - सहित या माया - रहित आलोचना करने पर वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 13. जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया सहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक या षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसके उपरांत मायासहित या मायारहित आलोचना करने पर भी वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 14. जो भिक्षु अनेक बार चातुर्मासिक या अनेक बार कुछ अधिक चातुर्मासिक, अनेक बार पंचमासिक या अनेक बार कुछ अधिक पंचमासिक परिहारस्थान में से किसी एक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक प्रायश्चित् आता है और माया - सहित आलोचना करने पर पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक या छमासिक प्रायश्चित्त आता है। 1. To the ascetic who repents with sincerity, doing the Pratisevana once in a month abandoned place, one months expiation comes to him and in repenting deceitfully an expiation of two months comes to him. निशीथ सूत्र (340) Nishith Sutra

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