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2. अपलिउंचिए पलिउंचियं, 3. पलिउंचय अपलिउंचियं, 4. पलिउंचिए पलिउंचियं, आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय आरूहेयव्वे सिया, जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे
सिया।
18. जे भिक्खु बहुसो वि चाउम्मासियं वा, बहुसो वि साइरेग-चाउम्मासियं वा, बहुसो विपंचमासियं पैर
वा, बहुसो विसाइरेग-पंचमासियंवा, एएसिं परिहारट्ठणाणं अन्नयरं परिहास्ट्ठाणं पडिसेवित्ता पर आलोएज्जा, पलिउँचिय आलोएमाणे ठवणिज्जंठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए विपडिसेवित्ता से विकसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे सिया। 1. पुट्विं पडिसेवियं पुट्विं आलोइयं, 2. पुब्वि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, 3. पच्छा पडिसेवियं पुट्विं आलोइयं, 4. पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, 1. अपलिउंचिए अपलिउंचियं, 2. अपलिउंचिए पलिउंचियं, 3. पलिउँचिए अपलिउंचियं, 4. पलिउंचए पलिउँचियं, आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय आरूहेयव्वे सिया,
जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से विकसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे की सिया।
जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन र परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर आसेवित प्रतिसेवना के अनुसार प्रायश्चित्त रूप परिहार तप से में स्थापित करके उसकी योग्य वैयावृत्य करनी चाहिए। यदि वह परिहार तप में स्थापित होने पर भी किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिए। 1. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, 2. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पीछे आलोचना की हो,
निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra