Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 318
________________ पात्र का वर्ण परिवर्तन करने का प्रायश्चित्त THE EXPIATION OF CHANGING COLOUR OF THE POT 10. जे भिक्खू वण्णमंतं पडिग्गहं विवण्णं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ । 11. जे भिक्खू विवण्णं पडिग्गहं वण्णमंतं करेड़, करेंतं वा साइज्जइ । 10. जो भिक्षु अच्छे वर्ण वाले पात्र को विवर्ण करता है अथवा विवर्ण करने वाले का समर्थन करता है। 11. जो भिक्षु विवर्ण पात्र को अच्छे वर्ण वाला करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है | ) 10. The ascetic who devastates the colour of a fine caloured utensil or supports to only who does so. 11. The ascetic who devastates the caloured utensil to colour of a fine or supports to only who does so. Laghuchaumasi atonement comes to him. पात्र परिकर्म करने के प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF WASHING THE UTENSILS 12. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंत वा साइज्जइ । 13. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेवसिएण सीओदगविडे वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंत वा पधोएंतं वा साइज्जइ । 14. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णा उल्लोलेज्ज वा उव्वल्लेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा साइज्जइ । 15. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेवसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा साइज्जइ । 16. जे भिक्खू "दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेसिएण सीओदगविडे वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंत वा पधोएंतं वा साइज्जइ । 17. जे भिक्खू "दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंत वा पधोएंतं वा साइज्जइ । 18. जे भिक्खू "दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेसिएण लोद्वेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वतं वा साइज्जइ । 19. जे भिक्खू “दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कट्टु बहुदेवसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेंतं वा साइज्जइ । 12. जो भिक्षु "मुझे नया पात्र नहीं मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को अल्प या बहुत अचित्त शीत जल या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है अथवा धोने वाले का समर्थन करता है। Nishith Sutra निशीथ सूत्र (248)

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