Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 355
________________ पृथ्वी, शय्या तथा छींके पर आहार रखने का प्रायश्चित्त THE REPENTANCE OF PUTTING THE FOOD ON GROUND, SHAYYA AND INTO THE HANGING NET 33. जे भिक्खू असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पुढवीए णिक्खिवइ, णिक्खिवंतं वा साइज्जइ । 34. जे भिक्खू असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा संथारए णिक्खिवड़, णिक्खिवंतं वा साइज्जइ । 35. जे भिक्खू असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा वेहासे णिक्खिवइ, णिक्खिवंतं वा साइज्जइ । 33. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य भूमि पर रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। 34. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य संस्तारकं पर रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। 35. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य छीके खूँटी आदि पर रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है | ) 33. The ascetic who keeps the food, water, sweets and tasty items on ground or supports the ones who keeps so. 34. The ascetic who keeps the food, water, sweet and the tasty items on the bed as supports the ones. 35. The ascetic who keep food, water, sweets in the bag or hanging a laghu haumasi expiation comes to him. विवेचन - भिक्षु करपात्री या पात्रधारी होते हैं। अतः हाथ में, पात्र में या पात्र रखने के वस्त्र पर तो अशनादि रखा जा सकता है। किन्तु हाथ में या पात्र में ग्रहण किए हुए आहार को भूमि पर या आसन पर रखना नहीं कल्पता है। Comments-The ascetics either take food in pot or etc. or only in hands. Therefore, the food etc can only be put on the hand, utensil and on the utensil keeping cloth. But the food which is to be held by hands or in the utensil, is prohibited to keep it on the ground or the mat. गृहस्थों के सामने आहार करने का प्रायश्चित्त THE REPENTANCE OF EATING FOOD IN FRONT OF THE HOUSEHOLDERS 36. जे भिक्खू अण्णउत्थिएहिं वा गारत्थिएहिं वा सद्धि भुंजइ, भुंजंतं वा साइज्जइ । 37. जे भिक्खू अण्णउत्थिएहिंवा गारत्थिएहिंवा सद्धिं आवेढिय-परिवेढिय भुंजइ, भुंजंतं वा साइज्जइ । 36. जो भिक्षु अन्यतीर्थिकों या गृहस्थों के साथ (समीप बैठकर) आहार करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है । सोलहवाँ उद्देशक (283) Sixteenth Lesson

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