Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 357
________________ करतानाAMAL In it the number of shawls (Chadar) has been stated as three, but there is no mention of the numbers of utensils, cholpathaka, mukhvastrika and of all the implements, however, the word "Etc" has been used in the end of the text, so, the other instruments are automatically included i.e. seat etc. In this sutra of repentance, the atonement of keeping the implements more than counting and measurement has been narrated but the numbers and measurement of the instruments are not mentioned clearly in these Agamas mentioned above. विराधना वाले स्थानों पर परठने का प्रायश्चित्त THE REPENTANCE OF EXCRETING AT PROHIBITED SITES रे 40. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 141. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 42. जे भिक्खू समरक्खाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 43. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिठ्ठवेंतं वा साइज्जइ। 44. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 45. जे भिक्खूचित्तमंताए सिलाए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 46. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 47. जेभिक्खूकोलावासंसिवा दारूए जीवपइट्ठिए, सअंडे जाव मक्कडा-संताणए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। - 48. जे भिक्खू थूणसिवा, गिहेलुयसि वा, उसुयालंसिवा,कामजलंसिवा,अण्णयरंसिवा तहप्पगारंसि सो अंतलिक्खजायंसि दुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, घर परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 349. जे भिक्खू कुलियसि वा, भित्तिसि वा, सिलसि वा, लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि 4 अंतलिक्खजायंसि दुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, सार परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। र 50. जे भिक्खू खंधसि वा, फलिहंसि वा, मंचंसि वा, मंडवंसि वा, मालसि वा, पासायसि वा, हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि दुब्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकपे, र चलाचले उच्चार-पासवण परिट्ठवेइ, परिट्ठवेतं वा साइज्जइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं॥ 40. जो भिक्षु सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर मल-मूत्र का परित्याग करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। 3 41. जो भिक्षु जल से स्निग्ध पृथ्वी पर उच्चार प्रस्रवण परठता है अथवा परठने वाले का समर्थन करता है। सोलहवाँ उद्देशक (285) Sixteenth Lesson

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