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26. जो भिक्षु आहार आदि सुविधा से प्राप्त होने वाले जनपदों (क्षेत्रों) के होते हुए भी अनार्य, म्लेच्छ एवं सीमा पर रहने वाले चोर - लुटेरे आदि जहाँ रहते हों, उस तरफ विहार करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
25. The ascetic who resolves to go through distant areas where it may take a few days to teach even if the easily food available areas are there, or supports the ones who does so.
26. The ascetic who travels towards the thieves settlements settled near the frontier area in the uncivilised settlement, barbaric inhabitants or supports the one who does so a laghu chaumasi expiation comes to him.
घृणित कुलों में भिक्षागमनादि का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF GOING FOR SEEKING FOOD IN THE DEJECTED CLANS
27. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गा वा साइज्जइ ।
28. जे भिक्खू दुगुछियकुलेसु वत्थं वा, पडिग्गहंवा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहें तं
वा साइज्जइ ।
29. जे भिक्खू दुर्गाछियकुलेसु वसहिं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ । 30. जे भिक्खू दुगुछियकुलेसु सज्झायं उद्दिसइ, उद्दिसंतं वा साइज्जइ ।
31. जें भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं वाएइ, वाएंतं वा साइज्जइ ।
32. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइज्जइ ।
27. जो भिक्षु घृणित कुलों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य लेता है अथवा लेने वाले का समर्थन करता है।
28. जो भिक्षु घृणित कुलों से वस्त्र, पात्र कंबल या पादप्रोछन लेता है अथवा लेने वाले का समर्थन करता है।
29. जो भिक्षु घृणित कुलों की शय्या ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 30. जो भिक्षु घृणित कुलों में स्वाध्याय का उद्देश (मूल पाठ की वाचना देना) करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है।
31. जो भिक्षु घृणित कुलों में स्वाध्याय की वाचना (सूत्रार्थ) देता है अथवा देने वाले का समर्थन करता है।
32. जो भिक्षु घृणित कुलों में स्वाध्याय की वाचना लेता है अथवा लेने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है ।)
27. The ascetic who accepts food water, sweets as the tasty items from the despisable clan or supports the ones who accepts so.
सोलहवाँ उद्देशक
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Sixteenth Lesson