Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 261
________________ घर दिवस-भोजन निंदा तथा रात्रि-भोजन प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF CRITICIZING OF TAKING FOOD DURING DAY TIME AND PRAISING FOOD TAKEN AT NIGHT 5571. जे भिक्खू दियाभोयणस्स अवण्णं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ। 41 72. जे भिक्खू राइभोयणस्स वण्णं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ। 71. जो भिक्षु दिन में भोजन करने की निन्दा करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। 1- 72. जो भिक्षु रात्रिभोजन करने की प्रशंसा करता है अथवा करने वाला का समर्थन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। The ascetic who criticizes the ones who takes food at day time and supports the ones who takes so. सर 72. The ascetic who praises the ones who takes food at night and supports the ones who takes so, Guru-chaumasi expiation come to him. विवेचन-दशवैकालिक अ. 4 में कथन है कि भिक्षु रात्रि-भोजन का तीन करण, तीन योग से जीवन पर्यंत घर के लिए प्रत्याख्यान करता है। अतः प्रशंसा करने से अनुमोदन के त्याग का भंग होता है। एयं च दोसं दठूण णायपुत्तेण भासियं। सव्वाहारं न भुंजंति णिग्गंथा राइभोयणं॥ -दशवै. अ. 6, गा. 25 अर्थ-रात्रि-भोजन को दोषयुक्त जानकर ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान महावीर ने कहा है कि निर्ग्रन्थ किसी प्रकार का आहार रात्रि में नहीं करते। Comments—In the fourth chapter of Dasvaikalik it is the command of the Lord Jina that the ascetic denounces taking food at night through three Karan and three Yoga for life time. Therefore, through praising it, the vow is damaged. Aiyam cha dosam Dotthana Nayaputten Bhasiyam. Savvaharam Na Bhunjanti Niggantha Raeebhoyanam. Dasvai. Chapter 6 and verse 26. Knowingly taking food at night is faulty Jnatpurta Bhagwan Mahavir has said that, "The ascetic must not take any kind of food of night. घर रात्रि-भोजन करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF TAKING FOOD AT NIGHT 3373. जे भिक्खू दिया असणं पाणं खाइमं साइमं पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 3874. जे भिक्खू दिया असणं पाणंखाइमं साइमं पडिग्गाहेत्ता रत्तिं भुंजइ, भुंजतं वा साइज्जइ। 4 75. जे भिक्खू रत्तिं असणं पाणंखाइमं साइमं पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजइ, भुंजतं वा साइज्जइ। परे 76. जे भिक्खूरत्तिं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिग्गाहेत्ता रत्तिं भुजइ, जंतं वा साइज्जइ। 73. जो भिक्षु दिन में अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करके (रात्रि में रखकर दूसरे दिन) दिन में खाता है अथवा खाने वाले का समर्थन करता है। ग्यारहवाँ उद्देशक (197) Eleventh Lesson

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