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तेरहवा उद्देशक THE THIRTEENTH CHAPTER
प्राथमिकी INTRODUCTION
इस उद्देशक में श्रमण को स्निग्ध पृथ्वी, शिला आदि पर कायोत्सर्ग करने, गृहस्थ को कटु र वचन बोलते, मंत्र, लाभ व हानि बताने, धातु का स्थान आदि बताने, वमन विरेचन प्रतिकर्म करने, सर पार्श्वस्थ कुशील की प्रशंसा व वन्दन करने, धात्रीपिण्ड, दूतीपिण्ड, निमित्तपिण्ड, चिकित्सापिण्ड, क्रोधादि पिण्ड का भोग करने आदि का निषेध किया गया है। इस प्रकार की प्रवृत्तियाँ करने वाले पूरे साधक को लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
In this chapter prohibition of performing Kayotsarga at the lubricated earthen piece of rock by a shraman, telling the bitter words, spells, profit & loss to a householder, telling the metal places performing the activities of vomiting and purgations, bowing and prasing of a Parshavasth Kushil, consuming a Dhatripind, Dutipinds, Chikitsapinds, food sewed in anger etc has been narrated. According to the present chapter expiation of laghuchaumasi comes to a prectiser who performs such types of activities. सचित्त पृथ्वी आदि पर खड़े रहने आदि का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF STANDING ON LIVE EARTH 1. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। 2. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जंवा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। सत्र 3. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। 4. जेभिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जंवा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। र 5. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। 6. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। 7. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ। 8. जे भिक्खू कोलावाससि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे जाव मकडासंताणए ठाणं वा, सेज्जं
वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं दा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है अथवा
करने वाले का समर्थन करता है। 2. जो भिक्षु सचित्त जल से स्निग्ध भूमि पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है अथवा करने 3
वाले का समर्थन करता है।
निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra