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वा, 18. णइमहेसुवा, 19. सरमहेसुवा, 20. सागरमहेसुवा, 21. आगारमहेसुवा, अण्णयरेसु वा, तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु असणंवा, पाणं वा, खाइमंवा, साइमं वा पडिग्गाहेइ,
पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 15. जेभिक्खूरण्णोखत्तियाणंमुदियाणंमुद्धाभिसित्ताणंउत्तरसालसिवा, उत्तरगिहंसिवा,रीयमाणाणं
असणं वा, पाणं वा,खाइमंवा, साइमंवा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 16. जेभिक्खूरपणो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं 1. हयसाला-गयाण वा, 2. गयसालागयाण
वा, 3. मंतसालागयाण वा, 4. गुज्झसालागयाण वा, 5. रहस्ससालागयाण वा, 6. मेहणसालागयाण वा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेड, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। जे भिक्खूरपणो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं सण्णिहिसण्णिचयाओ खीरंवा, दहिवा, णवणीयं वा, सप्पिं वा, गुलं वा, खंडं वा, सक्करं वा, मच्छंडियं वा, अण्णयरं भोयणजायं
पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 8 18. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं उस्सट्ठ-पिंडं वा, संसट्ठ-पिंडं वा, घर अणाह-पिंडं वा, वणीमग-पिंडं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ।
3. तंसेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारठाणं अणुग्घाइयं। 42 14. जो भिक्षु मूर्धाभिषिक्त शुद्धवंशीय क्षत्रिय राजा के 1. मेले आदि में, 2. पितृभोज में, 3. इन्द्र,
4. कार्तिकेय, 5. ईश्वर, 6. बलदेव, 7. भूत, 8. यक्ष, 9. नागकुमार, 10. स्तूप, 11. चैत्य, 12. वृक्ष, 13. पर्वत, 14. गुफा, 15. कुंआ, 16. तालाब, 17. हृद, 18. नदी, 19. सरोवर, 20. समुद्र, 21. खान इत्यादि किसी प्रकार के महोत्सव में तथा अन्य भी इसी प्रकार के अनेक महोत्सवों में उनके निमित्त से बना अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने
वाले का समर्थन करता है। घर 15. जो भिक्षु श्रेष्ठ कुलोत्पन्न मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा जब उत्तरशाला या उत्तरगृह (मंडप) में रहता
हो तब उसका अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन ___. करता है। 16. जो भिक्षु 1. अश्वशाला, 2. हस्तिशाला, 3. मंत्रणाशाला, 4. गुप्तशाला, 5. गुप्तविचारणाशाला
या 6. मैथुनशाला में गए हुए श्रेष्ठ कुलोत्पन्न मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के अशन, पान, खाद्य या
स्वाद्य को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 17. जो भिक्षु श्रेष्ठ कुलोत्पन्न मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के विनाशी द्रव्यों या अविनाशी द्रव्यों के
संग्रहस्थान से दूध, दही, मक्खन, घृत, गुड, खांड, शक्कर या मिश्री तथा अन्य भी कोई खाद्य
पदार्थ ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। जी 18. जो भिक्षु श्रेष्ठ कुलोत्पन्न मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के 1. उत्सृष्टपिंड, 2. भुक्तविशेषपिंड,
अनाथपिंड या वनीपकपिंड, (भिखारीपिंड) को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का
समर्थन करता है। आठवाँ उद्देशक
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Eighth Lesson