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राजा के उपनिवासस्थान के समीप ठहरने आदि का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF STAYING NEAR TO THE SUB RESIDENCE OF THE KING
12. अह पुण एवं जाणेज्जा' इहज्ज रायखत्तिए परिवुसिए' जे भिक्खू ताहे गिहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारेइ, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ ।
12. जब यह ज्ञात हो जाए कि आज इस स्थान में राजा ठहरे हैं तब जो भिक्षु उस गृह में, उस गृह के किसी भाग में उस गृह के निकट किसी स्थान में ठहरता है, स्वाध्याय करता है, अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य का आहार करता है या मल-मूत्र त्यागता है अथवा ऐसा करने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरूचौमासी प्रायश्चित्त आता 1)
12. When it comes into the knowledge of an ascetic that the king has been staying there, if then, the ascetic stays, takes food, water, sweet and tasty items or studies or relieves of natural call near to that house, in any part of that house or any place near to that house, or supports the ones who does so, a Guru-chaumasi expiation comes to him.
यात्रा में गए हुए राजा का आहार ग्रहण करने पर प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF ACCEPTING THE FOOD OF THE KING GOING ON JOURNEY
13. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तासंपट्ठियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ।
14. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ।
15. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइ - जत्तासंपट्ठियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ।
16. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइ - जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ।
17. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरि-जत्तासंपट्ठियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ।
18. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरि-जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा खाइवा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ।
13. जो भिक्षु युद्ध आदि की यात्रा के लिए जाते हुए शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। 14. जो भिक्षु युद्ध आदि की यात्रा से पुनः लौटते हुए शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra