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चिकित्सा संबंधी कथन सूत्र 80 में किया गया है। उसके अनंतर ही इन दो सूत्रों में बाह्य शुद्धि अथवा घर सुसज्जित करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। व्याख्याकार ने इसका संबंध शरीर के अतिरिक्त उपधि और मकान के साथ भी किया है। जो शुद्धि और शोभा से ही संबंधित होता है।
Comments—The meaning of removing the un-favourable object is to remove the impurity of the body, implements and the houses. And the meaning to establish the interested objects is to decorate body, implements and house.
In the last sutra of the sixth chapter to make the body strong the expiation of consuming the nourishments is stated. Therefore, this statement should be understood in context of the body.
Description related to treatment has been made in sutra 80. Within these two sutras the expiation of external purification or decoration has been narrated. The commentator has established its relation with residence and instruments in addition to the body also which is related only to the purification and decoration. पश-पक्षियों के अंगसंचालन आदिका प्रायश्चित्त THE EXPIATION OF MAKING THE MOVEMENT OF THE LIMBS AND ORGANS OF THE BIRDS AND ANIMALS. 83. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नयरं पसुजायं वा, पक्खिजायं वा, पायंसि वा, *
___पक्खंसि वा, पुच्छंसि वा, सीसंसि वा गहाय संचालेइ संचालेंतं वा साइज्जइ। 2 84. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा, पक्खिजायं वा, सोयसि कळं ___वा, किलिंचं वा अंगुलियं वा सलागं वा अणुप्पवेसित्ता संचालेइ संचालत वा साइज्जइ। 85. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा, पक्खिजायं वा अयमित्थिति
कटुआलिंगेज्ज वा, परिस्सएज्ज वा, परिचुम्बेज्ज वा छिंदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा, आलिंगतं. जर
वा, परिस्सयंतं वा, परिचुंबतं वा, छिंदंतं वा, विच्छिंदेंतं वा साइज्जइ। 83. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से किसी भी जाति के पशु या पक्षी के पाँव को, 2
पार्श्वभाग को (पंख को), पूँछ को या मस्तक को पकड़कर संचालित करता है अथवा
संचालित करने वाले का समर्थन करता है। 84. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से किसी भी जाति के पशु या पक्षी के श्रोत अर्थात्
अपानद्वार या योनिद्वार में काष्ठ, खपच्ची, अंगुली या बेंत आदि की श्लाका प्रविष्ट करके ।
संचालित करता है अथवा संचालित करने वाले का समर्थन करता है। 85. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से किसी भी जाति के पशु या पक्षी को 'यह स्त्री है
है' ऐसा जानकर उसका आलिंगन (शरीर के एक देश का स्पर्श) करता है, परिष्वजन (पूरे 3 शरीर का स्पर्श) करता है, मुख का चुंबन करता है या नख आदि से एक बार या अनेक बार और छेदन करता है अथवा आलिंगन आदि करने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरूचौमासी
प्रायश्चित्त आता है।) निशीथ सूत्र
(144)
Nishith Sutra