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1. कार्य नहीं किया है उसके विषय में पूछने पर भयभीत होकर कह देना कि मैंने किया। जो कार्य किया है उसके विषय में पूछने पर भयभीत होकर कह देना कि मैंने नहीं किया है।
2.
ऊँघते हुए को पूछने पर कह दे - मैं नहीं ऊँघ रहा हूँ ।
3.
अंधेरे में किसी अन्य की वस्तु को अपनी वस्तु कहना ।
इस प्रकार के मृषावाद के प्रायश्चित्त विधान इस सूत्र में है। वंचकवृत्ति ये या किसी का अहित करने के लिए कहे गए असत्य वचनों को यहाँ नहीं समझना चाहिए ।
Comments-The less false words are maintained as follows
1.
If someone asks about whatever undoable deed has been done then one answers fearing 'I have not done this work' and the work which has not been done when asking about it, answers fearing - I have done it.
2.
When asked while yawning one says I am not yawning.
3.
In the dark to say others thing as his own.
The atonement of such a falsehood is mentioned in this Sutra. The words uttered to harm others or deceitfully should not be taken here.
तृतीय महाव्रत के अतिचार का प्रायश्चित्त
THE EXPIATION OF THE PARTIAL TRANSGRESSION OF THE THIRD FULL VOW
20. जे भिक्खू लहुसगं अदत्तं आइयइ, आइयंतं वा साइज्जइ ।
20. जो भिक्षु अल्प अदत्त ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है ( उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
20. The ascetic who accepts a little of not given objects or supports ones who accepts so, a laghu-masik expiation costs him.
विवेचन - भिक्षु को प्रत्येक वस्तु याचना करके ही ग्रहण करनी चाहिए।
दशवैकालिक सूत्र के अध्ययन 6 में कहा है कि "दाँत शोधन करने के लिए तिनका (तृण) भी आज्ञा लिए बिना नहीं लेना चाहिए।"
व्यवहार सूत्र के उद्देशक 7 में कहा है कि "मार्ग में बैठना हो तो वहाँ भी आज्ञा ग्रहण करनी चाहिए।"
आचारांग सूत्र के श्रुतस्कंध 2 के अध्ययन 15 में कहा है कि “भिक्षु बारंबार (सदा ) आज्ञा लेने की वृत्ति वाला होना चाहिए अन्यथा कभी अदत्त भी ग्रहण किया जाना सम्भव है।"
भगवती सूत्र 'के शतक 16 के उद्देशक 2 में वर्णन है कि अवग्रह ग्रहण के प्रकारों को जानकर तीर्थंकर के शासन के सम्पूर्ण भिक्षुओं को भरत क्षेत्र में विचरने की और स्वामी रहित पदार्थों व स्थानों के उपयोग में लेने की शक्रेन्द्र आज्ञा देता है।
इसलिए ऐसे पदार्थों व स्थलों की आज्ञा ग्रहण करने की समाचारिक विधि है। जिसके लिए " शक्रेन्द्र की आज्ञा" या " अणुजाणह जस्सुग्गहो" ऐसा उच्चारण किया जाता है।
द्वितीय उद्देशक
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Second Lesson