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8 122. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिठ्ठवेत्ता ण पुंछइ, ण पुंछंतं वा साइज्जइ। 123. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता कट्टेण वा, किलिंचेण वा, अंगुलियाए वा, सलागाए
वा छइ, पुंछतं वा साइज्जइ। 124. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता णायमइ, णायमंतं वा साइज्जइ। 125. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता तत्थेव आयमइ, आयमंतं वा साइज्जइ। 126. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिठ्ठवेत्ता अइदूरे आयमइ आयमंतं वा साइज्जइ। 127. जे भिक्खू उच्चार-पासवणंपरिट्ठवेत्ता परं तिण्हंणावापूराणं आयमइ,आयमंतं वा साइज्जइ। 118. जो भिक्षु चौथी पोरिसी के चौथे भाग में उच्चार-प्रस्रवण की भूमि का प्रतिलेखन नहीं करता है ?
अथवा नहीं करने वाले का समर्थन करता है। 119. जो भिक्षु तीन उच्चार-प्रस्रवण भूमि की प्रतिलेखना नहीं करता है अथवा नहीं करने वाले का
समर्थन करता है। 120. जो भिक्षु एक हाथ से भी कम लम्बी-चौड़ी जगह में उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठने पूरे
वाले का समर्थन करता है। 121. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को अविधि से परठता है अथवा परठने वाले का समर्थन करता है।
जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर मलद्वार को नहीं पोंछता है अथवा नहीं पोंछने वाले का सही
समर्थन करता है। 123. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर मलद्वार को काष्ठ से, बाँस की खपच्ची से, अंगुली से 3
या बेंत आदि की शलाका से पोंछता है अथवा पोंछने वाले का समर्थन करता है। जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर आचमन (प्रक्षालन) नहीं करता है अथवा नहीं करने पूरे वाले का समर्थन करता है। जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर वहीं उसके ऊपर ही आचमन करता है अथवा, आचमन करने वाले का समर्थन करता है। जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर अति दूर जाकर आचमन करता है अथवा आचमन करने वाले का समर्थन करता है। जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर तीन से अधिक पसली से आचमन करता है अथवा रे
आचमन करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 18. The ascetic who does not clean the land for excreta and urination in the fourth
part of fourth. 'Paurasi' or supports the ones who does not do so. 119. The ascetic who does not clean three places for excremation or urination or supports
the ones who not does so. 120. The ascetic who discards the excreta and urine at the place lesser then one cubit
wide and long or supports the ones who throws away so.
| निशीथ सूत्र
(104)
Nishith Sutra