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In aphorism 63 the atonement has been said in respect of "Paschatkarama". If there is no fault of “Pashchatkarana" in the commodities to be donated or the donor is careful and not commits "Paschat Karma", then the atonement is not there in accepting food with unsmeared hands.
अन्योन्य शरीरका परिकर्म करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF CLEANING ONE ANOTHERS BODIES 64. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा ___ साइज्जइ। एवं तइयउद्देसगमेणंणेयव्वं जावजे भिक्खू गामाणुगामंदूइज्जमाणे अण्णमण्णस्स
सीसदुवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 64. जो भिक्षु आपस में एक-दूसरे के पावों का एक बार या अनेक बार 'आमर्जन' करता है अथवा :
करने वाले का समर्थन करता है। इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र 16 से 69 तक के) समान पूरा आलापक जान लेना चाहिए यावत् जो भिक्षु आपस में एक-दूसरे का ग्रामानुग्राम विहार 1 करते समय मस्तक ढाँकता है अथवा ढाँकने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक पूरे
प्रायश्चित्त आता है।) 64. The ascetic who cleanses once or repeatedly legs of each other or supports the
ones who does so. In the same way the full description should be known according to the third chapter (Sutra No 16 to 69) i.e covering the head while travelling from one village to another village or to supports the ones who travells so. (a laghumasik expiation comes to him)
विवेचन-ये कुल 54 सूत्र हैं। आवश्यक कारण के बिना, केवल भक्ति या कुतुहलवश आपस में शरीर का परिकर्म करने पर इन सूत्रों के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। तीसरे उद्देशक में ये कार्य स्वयं करने का प्रायश्चित्त र कहा गया है और यहाँ साधु-साधु आपस में परिकर्म करें तो प्रायश्चित्त कहा गया है। इतनी विशेषता के साथ यहाँ पर भी 54 ही सूत्र समझ लेना चाहिए और उनका अर्थ एवं विवेचन भी प्रायः वैसा ही समझ लेना चाहिए।
सूत्र 64 से 117 तक अन्योन्य शरीर परिकर्म सूत्र तीसरे उद्देशक के समान है। इनकी तालिका इस प्रकार
64 से 69 70 से 75 76 से 81 82 से 87
पैर परिकर्म काया परिकर्म व्रण-चिकित्सा गंडमाल आदि की शल्य चिकित्सा कृमि निकालना नख काटना रोम परिकर्म दंत परिकर्म होठ परिकर्म
90 से 95 96 से 98 99 से 104
| निशीथ सूत्र
(102)
Nishith Sutra