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46. The ascetic who cuts or trims the grown beard or supports the ones who does so. * 47. The ascetic who cuts or trims this grown moustache or supports the ones who
does so-laghumasik expiation comes to him. दंत-परिकर्म-प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF BRUSHING THE TEETH 48. जे भिक्खू अप्पणो “दंते आघसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा साइज्जइ। 49. जे भिक्खू अप्पणो “दंते" सीओदगवियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा और
पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ। 50. जे भिक्खू अप्पणो “दंते" फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेंतं वा रएतं वा साइज्जइ। 48. जो भिक्षु दाँत (मंजन आदि से) एक बार घिसता है या बार-बार घिसता है अथवा घिसने वाले
का समर्थन करता है। 49. जो भिक्षु अपने दाँत शीतल या उष्ण अचित्त जल से एक बार या बार-बार धोता है अथवां धोने से
वाले का समर्थन करता है। 50. जो भिक्षु अपने दाँत मिस्सी आदि से रंगता है या तेल आदि पदार्थ लगाकर चमकीले बनाता है और
अथवा ऐसा करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 48. The ascetic who brushes the teeth once or again and again or supports the ones
who does so. 49. The ascetic who washes his teeth with non-living hot and cold water once or
repeatedly or supports the ones who does so. 50. The ascetic who dyes his teeth with lampblack powder or brightens with oil or
supports the ones who does so.
विवेचन-सामान्यतः मंजन करना और दंतधावन सम्बन्धी क्रियाएँ संयम जीवन के अयोग्य प्रवृत्तियाँ हैं। घर किन्तु असावधानी से या अन्य किसी कारण से दाँत रूग्ण हो जाए तो चिकित्सा के लिए मंजन करना एवं घर दंतप्रक्षालन सम्बन्धी क्रियाएँ करना अनाचार नहीं है। उसका प्रस्तुत सूत्र से प्रायश्चित्त नहीं आता है।
Comments-Generally the activities related to teeth brushing are restraint contradictory activities but in treating the teeth ailments toothpaste and tooth washing are not the partial transgression activities. There is no provision of expiation for this activity.
ओष्ठ-परिकर्म-प्रायश्चित्त THE EXPIATION OF LIPS DECORATION 51-56. जेभिक्खू अप्पणो उट्ठे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ, ___एवं पायगमेण णेयव्वं जाव जे भिक्खू अप्पणो उठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा फुमंतं वा रयंतं वा
साइज्जइ। 51-56. जो भिक्षु अपने होठों का एक बार या बार-बार आमर्जन करता है अथवा करने वाले का
अनुमोदन करता है, इस प्रकार पैर के आलापक के समान जानना यावत् जो भिक्षु अपने होठों पर | निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra