________________
चतुर्थ उद्देशक
THE FOURTH CHAPTER
तर जानतातील मानवतावतार तार सातवा वेतरतरतरतरतासारखा
प्राथमिकी INTRODUCTION ____ इस उद्देशक में बताया गया है कि यदि साधक साधना मार्ग से च्युत होकर अनेक प्रकार की अविवेक युक्त प्रवृत्तियाँ, जैसे-राजादि को वश में करना, उनका गुणानुवाद करना, आचार्य आदि से बिना पूछे विगय आहार ग्रहण करना, निर्ग्रन्थियों के उपाश्रय में अविधि से प्रवेश करना, कलह करना, ठहाका मारकर हँसना, सचित्त पदार्थों से लिप्त हाथों द्वारा आहार लेना, शरीर परिकर्म करना, संकीर्ण व जीव-संसक्त भूमि पर मल-मूत्र विसर्जित करना आदि करता है तो उसके लिए मासिक उद्घातिक परिस्थान अर्थात् लघुमासिक प्रायश्चित्त का विधान है।
It has been stated in this chapter that if the practiser having fallen from the path of spiritual practice performs many types of unwise activities namely overpowers the king, eulogises him, accepts fats without the permission of preceptor, enters in an unproper manner into the residence of nuns, creates fuss, laughs loudly, accepts food from the hands smeared with living beings takes bath, discards urine, excreta at the places which are occupied by living organism then an expiation of Laghu Masik or "Masika Udghatuku Paristhana" comes to him. राजा आदिको अपने वश में करने का प्रायश्चित्त THE EXPIATION OF CONTROLLING THE KING 1. जे भिक्खू "राय" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ। 2. जे भिक्खू "रायारक्खिय" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ। 3. जे भिक्खू "नगरारक्खिय" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ। 4. जे भिक्खू "निगमारक्खिय" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ। 5. जे भिक्खू “सव्वारक्खिये" अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ।
जो भिक्षु राजा को वश में करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। 2. जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक को वश में करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है।
3. जो भिक्षु नगररक्षक को वश में करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। - 4. जो भिक्षु निगमरक्षक को वश में करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। 5. जो भिक्षु सर्वरक्षक को वश में करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। (उसे
लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
| निशीथ सूत्र
(88)
Nishith Sutra