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8 29. जे भिक्खू"रण्णारक्खिय" अत्थीकरेइ, अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ। 230. जे भिक्खू"सव्वारक्खिय" अत्थीकरेइ, अत्थीकरेंतं वा साइज्जइ। 26. जो भिक्षु ग्रामरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है अथवा आकृष्ट करने वाले का समर्थन
करता है। 27. जो भिक्षु देशरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है अथवा आकृष्ट करने वाले का समर्थन
करता है। 28. जो भिक्षु सीमारक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है अथवा आकृष्ट करने वाले का समर्थन ___करता है। 29. जो भिक्षु राजरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है अथवा आकृष्ट करने वाले का समर्थन ___करता है। 22 30. जो भिक्षु सर्वरक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है अथवा आकृष्ट करने वाले का समर्थन
. करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 26. The ascetic who attracts the village security guard supports the ones who does so. 27. The ascetic who attracts the national security guard or supports the ones who
attracts so. 28. The ascetic who attracts the Border security guard or supports the ones who
attracts so. 29. The ascetic who attracts the state security guard or supports the ones who
attracts so. 30. The ascetic who attracts the General or supports the ones who attracts so, a laghu
masik expiation comes to him.
कृत्स्न धान्य खाने का प्रायश्चित्त THE EXPIATION OF EATING FULL (KRITSAN) GRAIN
31. जे भिक्खू"कसिणाओ" ओसहिओ आहारेइ, आहारतं वा साइज्जइ। है 31. जो भिक्षु 'कृत्स्न' औषधियों (सचित्त धान्य आदि) का आहार करता है अथवा करने वाले का र समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 31. The ascetic who accepts (living grains) “Kritsan” medicines or supports the ones
who does so, a laghu-masik atonement costs him.
विवेचन-"कसिण"-द्रव्यकृत्स्न और भावकृत्स्न इन दो भेदों के चार भाग होते हैं। द्रव्यकृत्स्न का अर्थ 28 है अखंड और भावकृत्स्न का अर्थ है सचित्त । यहाँ प्रायश्चित्त का विषय है इसलिए "भावकृत्स्न" (सचित्त) अर्थ ही ग्रहण करना चाहिए।
अतः सूत्र का अर्थ यह है कि सचित्त धान्य एवं बीज का आहार करने से लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Lesson