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*शव्या-संस्तारक के कालातिक्रमण का प्रायश्चित्त
THE EXPIATION OF CROSSING THE LIMIT OF TIME OF SHAYYA-SAMSTARAKA 850. जे भिक्खू उबद्धियं सेज्जासंथारयं परंपज्जोसवणाओ उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा साइज्जइ। 51. जे भिक्खू वासावासियं सेज्जासंथारयं परं दस रायकप्पाओ उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा
साइज्जइ। 50. जो भिक्षु शेषकाल यानि मासकल्प के लिये ग्रहण किये हुए शय्या-संस्तारक को पर्युषण र (संवत्सरी) के बाद रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। 851. जो भिक्षु वर्षावास चौमासे के लिये ग्रहण किये हुए शय्या-संस्तारक को चौमासे के बाद दस 3 दिन से अधिक रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त * आता है।)
The ascetic who keeps the Shayya Samstaraka for left over period-it means for a month period upto the Paryushan Samvatshree time is over or supports the ones
who keeps so. *.51. The ascetic who has accepted the Shyya Samstaraka for a period of four months,
keeps it more than ten days after the four months are over or supports the ones who keeps so, a laghu-masik expiation comes to him.
विवेचन-विभिन्न आगमों के अनेक स्थलों में "अल्प उपाधि" का उल्लेख मिलता है। अतः अत्यन्त आवश्यकता के बिना यथाशक्य शरीर अथवा संयम सम्बन्धी पाट-घास आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि
लाना, देना, प्रतिलेखन करना, प्रमार्जन करना आदि कार्यों से स्वाध्याय की हानि होती है। र आवश्यकता होने पर शेष काल में या चातुर्मास में कभी पाट, घास आदि उपकरण ग्रहण किये जा सकते हैं। और उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है परन्तु जितनी अवधि के लिए ग्रहण हों उस अवधि का उल्लंघन नहीं होना चाहिए र तथा सूत्रनिर्दिष्ट समय के पूर्व पुनः आज्ञा प्राप्त कर लेनी चाहिए। B Comments-In the holy scripture of jainism “Alap Upadhi" (less implements) are
granted. so without any need the pot-grass etc. should not be accepted, because there is loss in the practice of restraint in the activities pertaining to the taking, giving, cleaning and improving. If the need arises then the Bed-grass etc. can be accepted, there is no atonement for it, but for how many hours it has been allotted, if required for more days then the permission should be taken before the time is over. वर्षा से भीगते हए शय्या-संस्तारक केन हटाने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF NOT REMOVING THE SHAYYA SAMSTTARAKA SOAKING IN RAIN 52. जे भिक्खू उबद्धियं वा वासावासियं वा सेज्जासंथारयं उवरि सिज्जमाणं पेहाए न ओसारेइ, न
ओसारेंतं वा साइज्जइ।। 52. जो भिक्षु शेषकाल या वर्षावास के लिए ग्रहण किए हुए शय्या-संस्तारक को वर्षा से भीगता
हुआ देखकर भी नहीं हटाता है अथवा नहीं हटाने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक
प्रायश्चित्त आता है।) द्वितीय उद्देशक
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Second Lesson
सास्ता तानाशा
MMAMANMAMMALAIMILAILAIMIM WRITIतावातावारिताका
MILAILAIMIX TIRIR