Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
छठा शतक : उद्देशक-३ ___ [५-२ उ.] गौतम ! जीवों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे गये है - मनःप्रयोग, वचनप्रयोग और कायप्रयोग। इन तीन प्रयोगों से जीवों के कर्मों का उपचय कहा गया है। इस प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार का प्रयोग कहना चाहिए। पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक (एकेन्द्रिय पंच स्थावर) जीवों तक के एक प्रकार के (काय) प्रयोग से (कर्मपुद्गलोपचय होता है।) विकलेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार होते हैं, यथा—वचन-प्रयोग और काय-प्रयोग। इस प्रकार उनके इन दो प्रयोगों से कर्म (पुद्गलों)का उपचय होता है। अतः समस्त जीवों के कर्मोपचय प्रयोग से होता है, स्वाभविक-रूप से नहीं। इसी कारण से कहा गया है कि ........" यावत् स्वाभाविक रूप से नहीं होता। इस प्रकार जिस जीव का जो प्रयोग हो, वह कहना चाहिए। यावत् वैमानिक तक (यथायोग्य) प्रयोगों से कर्मोपचय का कथन करना चाहिए।
विवेचन वस्त्र में पुद्गलोपचय की तरह, समस्त जीवों के कर्मपुद्गलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? प्रस्तुत सूत्रद्वय में वस्त्र में पुद्गलोपचय की तरह जीवों के कर्मोपचय उभयविध न होकर प्रयोग से ही होता है, इसकी सकारण प्ररूपणा की गई है।
'पयोगसा' – प्रयोग से-जीव के प्रयत्न से और वीससा–विलसा का अर्थ है—बिना ही प्रयत्न के स्वाभाविक रूप से।
निष्कर्ष-संसार के समस्त जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय प्रयोग-स्वप्रयत्न से होता है, स्वाभाविकरूप (काल, स्वभाव, नियति आदि) से नहीं। अगर ऐसा नहीं माना जाएगा तो सिद्ध जीव योगरहित हैं, उनके भी कर्मपुद्गलों का उपचय होने लगेगा, परन्तु यह सम्भव नहीं। अत: कर्मपुद्गलोपचय मन, वचन और काया इन तीनों प्रयोगों में से किसी एक, दो या तीनों से होता है, यही युक्तियुक्त सिद्धान्त है।' तृतीय द्वार-वस्त्र के पुद्गलोपचयवत् जीवों के कर्मोपचय की सादि-सान्तता आदि का विचार -
६. वत्थस्सणं भंते ! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिते? सादीए अप्पज्जवसिते? अणादीए सपज्जवसिते ? अणादीए अपजवसिते ?
गोयमा ! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिते, नो सादीए अपजवसिते, नो अणादीए सपज्जवसिते, नो अणादीए अपज्जवसिते।
[६ प्र.] भगवान् ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि-सान्त है, सादि अनन्त है, अनादि-सान्त है, अथवा अनादि-अनन्त है ?
[६ उ.] गौतम ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि-सान्त होता है, किन्तु न तो वह १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २५४
(ख) भगवती. (टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. २७४