Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१८
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ महाकर्मादि की व्याख्या - जिसके कर्मों की स्थिति आदि लम्बी हो, उसे महाकर्म वाला, जिसकी कायिकी आदि क्रियाएँ महान् हों, उसे महाक्रिया वाला, कर्मबंध के हेतुभूत मिथ्यात्वादि जिसके महान् (गाढ़ एवं प्रचुर) हों उसे, महाश्रव वाला, तथा महापीड़ा वाले को महावेदना वाला कहा गया है।' द्वितीय द्वार—वस्त्र में पुद्गलोपचयवत् समस्त जीवों के कर्मपुद्गलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? एक प्रश्नोत्तर -
४. वत्थस्स णं भंते ! पोग्गलोवचए किं पयोगसा, वीससा ? गोयमा ! पयोगसा वि, वीससा वि।
[४ प्र.] भगवन् ! वस्त्र में जो पुद्गलों का उपचय होता है, वह क्या प्रयोग (पुरुष-प्रयत्न) से होता है, अथवा स्वाभाविक रूप से (विस्रसा)?
[४ उ.] गौतम ! वह प्रयोग से भी होता है, स्वाभाविक रूप से भी होता है।
५.[१] जहा णं भंते ! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा, वीससा ?
गोयमा ! पयोगसा, नो वीससा। .[५-१ प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय भी प्रयोग से और स्वभाव से होता है ?
[५-१ उ.] गौतम ! जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय प्रयोग से होता है, किन्तु स्वाभाविक रूप से नहीं होता। [२] से केणठेणं०?
गोयमा ! जीवाणं तिविहे पयोगे पण्णत्ते, तं जहा – मणप्पयोगे वइप्पयोगे कायप्पयोगे य। इच्चेतेणं तिविहेणं पयोगेणं जीवाणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। एवं सव्वेसिं पंचेंदियाणं तिविहे पयोगे भाणियव्वे। पुढविक्काइयाणं एगविहेणं पयोगेणं, एवं जाव वणस्सतिकाइयाणं। विगलिंदियाणं दुविहे पयोगे पण्णत्ते, तं जहा - वइप्पयोगे य, कायप्पयोगे य। इच्चेतेणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। से एएणट्टेणं जाव नो वीससा। एवं जस्स जो पयोगो जाव वेमाणियाणं।
[५-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २५३
(ख) भगवती. (टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. २७० से २७२ तक