Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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में, अधमता में, अनूर्ध्वता में, दुःखरूप में,
[२-१ उ. ] हाँ, गौतम ! महाकर्म वाले जीव के यावत् परिणत होता है।
- असुखरूप में बार-बार परिणत होता है ?
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[ २ ] से केणट्ठेणं० ?
गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स अहतस्स वा धोतस्स वा तंतुग्गतस्स वा आणुपुव्वीए परिभुज्जमाणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सव्वओ पोग्गला चिज्जंति जाव परिणमंति, से तेणट्ठेणं० ।
'यावत् ऊपर कहे अनुसार ही
[२-२ प्र.] (भगवन् ! ) किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[२-२ उ.] गौतम ! जैसे कोई अहत (जो पहना गया – परिभुक्त न हो), धौत (पहनने के बाद धोया हुआ), तन्तुगत (हाथ करघे से ताजा बुन कर उतरा हुआ) वस्त्र हो, वह वस्त्र जब क्रमशः उपयोग में लिया जाता है, तो उसके पुद्गल सब ओर से बंधते (संलग्न होते) हैं, सब ओर से चय होते हैं, यावत् कालान्तर में वह वस्त्र मसोते जैसा अत्यन्त मैला और दुर्गन्धित रूप में परिणत हो जाता है, इसी प्रकार महाकर्म वाला जीव उपर्युक्त रूप से यावत् असुखरूप में बार-बार परिणत होता है।
३. [ १ ] से नूणं भंते ! अप्पकम्मस्स अप्पकिरियस्स अप्पावस्स अप्पवेदणस्स सव्वओ पोग्गला भिजंति, सव्वओ पोग्गला छिज्जंति, सव्वओ पोग्गला विद्धंसंति, सव्वओ पोग्गला परिविद्धंसंति, सया समितं पोग्गला भिज्नंति छिज्जंति विद्धंसंति परिविद्धंसंति, सया समितं च णं तस्स आयां सुरूवत्ताए पसत्थं नेयव्वं जाव' सुहत्ताए, नो दुक्खत्ताए भुज्जो २ परिणमंति ?
हंता, गोयमा ! जाव परिणमति ।
[३-२ उ.] हाँ, गौतम ! अल्पकर्म वाले जीव का परिणत होता है।
१.
[३-१ प्र.] भगवन् ! क्या निश्चय ही अल्पकर्म करने वाले, अल्पक्रिया वाले, अल्प आश्रव वाले और अल्पवेदना वाले जीव सर्वत: (सब ओर से) पुद्गल भिन्न (पूर्व सम्बन्धविशेष को छोड़कर अलग) हो जाते हैं ? सर्वतः पुद्गल छिन्न होते (टूटते) जाते हैं ?, क्या सदा सतत पुद्गल भिन्न, छिन्न, विध्वस्त और परिध्वस्त होते हैं ? क्या उसका आत्मा (बाह्य आत्मा शरीर ) सदा सतत सुरूपता में यावत् सुखरूप में और अदुःखरूप में बार-बार परिणत होता है ? (पूर्वसूत्र में अप्रशस्त पदों का कथन किया है, किन्तु यहाँ सब प्रशस्त पदों का कथन करना चाहिए।)
यावत् ऊपर कहे अनुसार ही
· यावत्
-
'जाव' पद यहाँ निम्नलिखित पदों का सूचक है. -'सुवण्णत्ताए सुगंधत्ताए सुरसत्ताए सुफासत्ताए इट्ठत्ताए कंत्ता पिता सुभत्ताए मणुण्णत्ताए मणमत्ताए इच्छियत्ताए अणभिज्झियत्ताए उड्डत्ताए, नो अहत्ताए, सुहत्ताए'।