Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम शतक : उद्देशक - १]
जहा पण्णवणाए पढमए आहार उद्देसए तथा भाणियव्वं । ठिति उस्सासाहारे किं वाऽऽहारेंति सव्वओ वा वि ।
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कतिभागं सव्वाणि व कीस व भुज्जो परिणमंति ? ॥२ ॥ [१-३ प्र.] भगवन्! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं?
[१-३ उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के आहारपद (२८वें) के प्रथम उद्देशक के अनुसार समझ लेना । गाथार्थ - नारक जीवों की स्थिति, उच्छ्वास तथा आहार-सम्बन्धी कथन करना चाहिए । क्या वे आहार करते हैं? वे समस्त आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं? वे कितने भाग का आहार करते हैं या वे सर्व-आहारक द्रव्यों का आहार करते है ? और वे आहारक द्रव्यों को किस रूप में बार-बार परिणमाते हं ।
[ १-४ ] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिता पोग्गला परिणता १ ? आहारिता आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणता २ ? अणाहारिता आहारिज्जिस्समाणा पोग्गला परिणया ३ ? अणाहारिया अणाहारिज्जिस्समाणा पोग्गला परिणया- ४ ?
गोयमा ! नेरइयाणं पुव्वाहारिता पोग्गला परिणता १, आहारिता आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणता परिणमंति य २, अणाहारिता आहारिज्जिस्समाणा पोग्गला नो परिणता, परिणमिस्संति ३, अणाहारिया अणाहारिज्जिस्समाणा पोग्गला नो परिणता, नो परिणमिस्संति ४
[१-४ प्र.] भगवन्! नैरयिकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ? आहारित (आहार किये हुए), तथा (वर्तमान में) आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित (नहीं आहार किये हुए) हैं, वे तथा जो पुद्गल (भविष्य में) आहार के रूप में ग्रहण किये जायेंगे, वे परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं और आगे भी आहारित (आहार के रूप में) नहीं होंगे, वे परिणत हुए ?
[१-४ उ.] हे गौतम! नारकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए; १. (इसी तरह) आहार किये हुए और आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए, परिणत होते हैं, २. किन्तु नहीं आहार किये हुए (अनाहारित) पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा भविष्य में जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किये जायेंगे, वे परिणत होंगे, ३. अनाहारित पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया जायेगा, वे भी परिणत नहीं होंगे ४ ।
[ १-५ ] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला चिता. पुच्छा ।
जहा परिणता तहा चिया वि । एवं उवचिता, उदीरिता, वेदिता, निज्जिण्णा । गाहा - परिणता चिता उवचिता उदीरिता वेदिया य निज्जिण्णा । एक्केक्कम्मि पदम्मी चडव्विहा पोग्गला होंति ॥ ३ ॥
[१-५ प्र.] हे भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित (संगृहीत) पुद्गल चय को प्राप्त हुए ?
[१-५ उ. ] हे गौतम! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसी प्रकार
उपचय को प्राप्त हुए; उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए ।