Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय शतक : उद्देशक-१०]
[२४५ [७-२ प्र.] भगवन् ! क्या धर्मास्तिकाय के दो प्रदेशों, तीन प्रदेशों, चार प्रदेशों, पांच प्रदेशों, छह प्रदेशों, सात प्रदेशों, आठ प्रदेशों, नौ प्रदेशों, दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों तथा असंख्येय प्रदेशों को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है ?
[७-२ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात्-धर्मास्तिकाय के असंख्यात-प्रदेशों को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता।
[३] एगपदेसूणे वि य णं भंते! धम्मत्थिकाए 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया ?
णो इणढे समढे। [७-३ प्र.] भगवन्! एकप्रदेश से कम धर्मास्तिकाय को क्या 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता
[७-३ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं; अर्थात् एकप्रदेश कम धर्मास्तिकाय को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता।
[४] से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ 'एगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया जाव (सु. ७ [२]) एगपदेसूणे वि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया?'
से नूणं गोयमा ! खंडे चक्के ? सगले चक्के ? भगवं ! नो खंडे चक्के, सगले चक्के।
एवं छत्ते चम्मे दंडे दूसे आयुहे मोयए। से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–एगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया जाव एगपदेसूणे वि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया।'
[७-४ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि धर्मास्तिकाय के एकप्रदेश को यावत् एकप्रदेश कम हो, वहाँ तक उसे धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता?
[७-४ उ.] गौतम! (यह बतलाओ कि) चक्र का खण्ड (भाग या टुकड़ा) चक्र कहलाता है या सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है ?
(गौतम-) भगवन् ! चक्र का खण्ड चक्र नहीं कहलाता, किन्तु सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है।
(भगवान्-) इसी प्रकार छत्र, चर्म, दण्ड, वस्त्र, शस्त्र और मोदक के विषय में भी जानना चाहिए। अर्थात् समग्र हों, तभी छत्र आदि कहे जाते हैं, इनके खण्ड को छत्र आदि नहीं कहा जाता। इसी कारण से, हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को, यावत् जब तक उसमें एक प्रदेश भी कम हो, तब तक उसे, धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता।
८[१] से किं खाई णं भंते! 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया ?
गोयमा! असंखेज्जा धम्मत्थिकायपदेसा ते सव्वे कसिणा पडिपुण्णा निरवसेसा एगग्गहण-गहिया, एस णं गोयमा! 'धम्मत्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया।