Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 541
________________ ५००] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ४. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारदपुत्तं अणगारं एवं वदासी–जति णं ते अज्जो! सव्व पोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा; किं दव्वादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झाअपदेसा ? खेत्तादेसेणं अज्जो ! सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा ? तह चेव। कालादेसेणं० तं चेव ? भावादेसेणं अज्जो ! ० तं चेव ? तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं वदासीदव्वादेसेण वि मे अज्जो! सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा संपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा; खेत्तादेसेण वि सव्वपोग्गला सअड्ढा०; तह चेव कालदेसेण वि; तं चेव भावादेसेण वि। [४ प्र.] तत्पश्चात् उन निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से यों कहा—हे आर्य! यदि तुम्हारे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो क्या, हे आर्य! द्रव्यादेश (द्रव्य की अपेक्षा) से वे सर्वपुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? अथवा हे आर्य! क्या क्षेत्रादेश से भी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश आदि पूर्ववत् हैं ? या कालादेश से सभी पुद्गल उसी प्रकार हैं या भावादेश से समस्त पुद्गल उसी प्रकार हैं ? [४ उ.] तदनन्तर वह नारदपुत्र अनगार, निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से यों कहने लगे हे आर्य! मेरे मतानुसार (विचार में), द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध,समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं। क्षेत्रादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य आदि उसी तरह हैं, कालादेश से भी वे सब उसी तरह हैं, तथा भावादेश से भी उसी प्रकार हैं। ५. तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी–जति णं अज्जो! दव्वादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपएसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपएसा; एवं ते परमाणुपोग्गले वि सअड्ढे समझे सपएसे, णो अणड्ढे अमज्झे अपएसे; जति णं अज्जो! खेत्तादेसेणवि सव्वपोग्गला सअ० ३, जाव एवं ते एगपदेसोगाढे वि पोग्गले सअड्ढे समझे सपदेसे; जति णं अज्जो! कालादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपएसा; एवं ते एगसमयठितीए वि पोग्गले ३१; तं चेव जति णं अज्जो! भावादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपएसा ३१, एवं ते एगगुणकालए वि पोग्गले सअड्ढे ३१ तं चेव; अह ते एवं न भवति, तो जं वदसि दव्वादेसेण वि सव्वपोग्गला सअ०१ ३ नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा, एवं खेत्तादेसेण वि, काला०, भावादेसेण वि तं णं मिच्छा। _ [५ प्र.] इस पर निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार प्रतिप्रश्न किया हे आर्य! तुम्हारे मतानुसार द्रव्यादेश से सभी पुद्गल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो क्या तुम्हारे मतानुसार परमाणुपुद्गल भी इसी प्रकार सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? और हे आर्य! क्षेत्रादेश से भी यदि सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं तो तुम्हारे मतानुसार एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होने चाहिए! और फिर हे आर्य! यदि १. यहाँ'३' का अंक तथा 'जाव' पद 'सअड्ढा समज्झा सपदेसा' पाठ का सूचक है।

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