Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४. विद्युत – बिजली चमकने पर एक प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय न करे।
किन्तु गर्जन और विद्युत का अस्वाध्याय चातुर्मास में नहीं मानना चाहिये। क्योंकि वह गर्जन और विद्युत प्रायः ऋतु-स्वभाव से ही होता है । अतः आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र पर्यन्त अनध्याय नहीं माना जाता।
५. निर्घात – बिना बादल के आकाश में व्यन्तरादिकृत घोर गर्जना होने पर, या बादलों सहित आकाश में कड़कने पर दो प्रहर तक अस्वाध्यायकाल है।
६. यूपक – शुक्लपक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया को सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रप्रभा के मिलने को यूपक कहा जाता है। इन दिनों प्रहर रात्रि पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
____७. यक्षादीप्त – कभी किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा, थोड़े-थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है वह यक्षादीप्त कहलाता है। अतः आकाश में जब तक यक्षाकार दिखता रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
८.धूमिका-कृष्ण - कार्तिक से लेकर माघ तक का समय मेघों का गर्भमास होता है । इसमें धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुन्ध पड़ती है । वह धूमिका-कृष्ण कहलाती है। जब तक यह धुंध पड़ती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
९. मिहिकाश्वेत – शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुंध मिहिका कहलाती है । जब तक यह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्यायकाल है।
१०. रज-उद्घात – वायु के कारण आकाश में चारों ओर धूलि छा जाती है, जब तक यह धूलि फैली रहती है, स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
उपरोक्त दस कारण आकाश संबंधी अस्वाध्याय के हैं। औदारिकशरीर सम्बन्धी दस अनध्याय
११-१२-१३. हड्डी, मांस और रुधिर – पंचेन्द्रिय तिर्यंच की हड्डी, मांस और रुधिर यदि सामने दिखाई दें, तो जब तक वहाँ से यह वस्तुएँ उठाई न जाएँ तब तक अस्वाध्याय है । वृत्तिकार आस-पास के ६० हाथ तक इन वस्तुओं के होने पर अस्वाध्याय मानते हैं।
इसी प्रकार मनुष्य संबंधी अस्थि, मांस और रुधिर का भी अनध्याय माना जाता है। विशेषता इतनी है कि इनका अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन-रात का होता है । स्त्री के मासिक धर्म का अस्वाध्याय तीन दिन तक । बालक एवं बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमशः सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता
१४. अशुचि – मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है।