Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 554
________________ पंचम शतक : उद्देशक - ९] [५१३ [२-२ उ.] गौतम ! पृथ्वी जीव- (पिण्ड) है और अजीव - (पिण्ड) भी है, इसलिए यह राजगृह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य भी जीव हैं, और अजीव भी हैं, इसलिए ये द्रव्य (मिलकर) राजगृह नगर कहलाते हैं । हे गौतम! इसी कारण से पृथ्वी आदि को राजगृह नगर कहा जाता है । विवेचन- राजगृह के स्वरूप का निर्णय : तात्त्विक दृष्टि से श्री गौतमस्वामी ने प्रायः बहुत से प्रश्न श्रमण भगवान् महावीर से राजगृह में पूछे थे, भगवान् के बहुत-से विहार भी राजगृह में हुए थे। इसलिए नौवें उद्देशक के प्रारम्भ में राजगृह नगर के स्वरूप के विषय में तात्त्विक दृष्टि से पूछा गया है। निष्कर्ष — चूंकि पृथ्वी आदि के समुदाय के बिना तथा राजगृह में निवास करने वाले मनुष्य, पशु-पक्षी आदि के समूह के बिना 'राजगृह' शब्द की प्रवृत्ति नहीं हो सकती, अतः राजगृह जीवाजीवा रूप है। चौबीस दण्डक के जीवों के उद्योत-अन्धकार के विषय में प्ररूपणा ३. [१] से नूणं भंते दिया उज्जोते रातिं अंधकारे ? हंता, गोयमा ! जाव अंधकारे । [३-१ प्र.] हे भगवन् ! क्या दिन में उद्योत (प्रकाश) और रात्रि में अन्धकार होता है ? [३ - १ उ.] हाँ, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है । [२] से केणट्ठेणं० ? गौतमा ! दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे, रातिं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे, से तेणट्ठेणं० ? [३-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? [३-२ उ.] गौतम! दिन में शुभ पुद्गल होते हैं अर्थात् शुभ पुद्गल - परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्गल अर्थात् अशुभ पुद्गल - परिणाम होते हैं। इस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है। है । ४. [१] नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए, अंधकारे ? गोयमा ! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे । [४-१ प्र.] भगवन्! नैरयिकों के ( निवासस्थान में) उद्योत होता है, अथवा अन्धकार होता है ? [४-१ उ.] गौतम! नैरयिक जीवों के (स्थान में ) उद्योत नहीं होता, (किन्तु) अन्धकार होता [२] से केणट्ठेणं० ? गोतमा ! नेरइयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे, से तेणट्ठेणं० । १. भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक २४६

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