Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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५०२]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से कदाचित् सप्रदेश, कदाचित् अप्रदेश) जानना चाहिए। जैसे (सप्रदेशी पुद्गल के सम्बन्ध में) द्रव्य से (द्रव्य की अपेक्षा से) कहा, वैसे ही काल से (कालादेश से) और भाव (भावादेश) से भी कथन करना चाहिए।
८. एतेसि णं भंते! पोग्गलाणं दव्वादेसेणं खेत्तादेसेणं कालादेसेणं भावादेसेणं सपदेसाण य अपदेसाण य कतरे कतरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
नारयपुत्ता! सव्वथोवा पोग्गला भावादेसेणं अपदेसा, कालादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा, दव्वादेसेणं अपदेसा अंसंखेज्जगुणा, खेत्तादेसेणं अपदेसा असंखेज्जगुणा खेत्तादेसेणं चेव सपदेसा असंखेज्जगुणा, दव्वादेसेणं सपदेसा विसेसाहिया, कालादेसेणं सपदेसा विसेसाहिया, भावादेसेणं सपदेसा विसेसाहिया।
[८ प्र.] हे भगवन् ! (निर्ग्रन्थीपुत्र!) द्रव्यादेश से, क्षेत्रादेश से, कालादेश से और भावादेश से, सप्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किन से कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[८ उ.] हे नारदपुत्र! भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येगुणा हैं; उनकी अपेक्षा द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं। उनसे क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद्गल अंसख्यातगुणा हैं, उनसे द्रव्यादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, उनसे कालादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं और उनसे भी भावादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं।
९. तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ, नियंठिपुत्तं अणगारं वंदित्ता नमंसित्ता एतमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति, २ ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
[९] इसके पश्चात् (यह सुनकर) नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को वन्दन नमस्कार किया। उन्हें (निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को) वन्दन-नमस्कार करके उनसे इस (अपनी कही हुई मिथ्या) बात के लिए सम्यक् विनयपूर्वक-बार-बार उन्होंने क्षमायाचना की। इस प्रकार क्षमायाचना करके वे (नारदपुत्र अनगार) संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे।
विवेचन द्रव्यादिकी अपेक्षापुद्गलोंकीसप्रदेशता-अप्रदेशताकेसम्बन्ध में निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र अनगार की चर्चा प्रस्तुत ९ सूत्रों में भगवान् महावीर के ही दो शिष्यों निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र के बीच द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से सर्वपुद्गलों की सार्द्धता-अनर्द्धता,समध्यताअमध्यता और सप्रदेशता-अप्रदेशता के सम्बन्ध में हुई मधुर चर्चा का वर्णन किया गया है।
- द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादेश का स्वरूप-द्रव्य की अपेक्षा परमाणुत्व आदि का कथन करना द्रव्यादेश, एकप्रदेशावगाढत्व इत्यादि का कथन करना क्षेत्रादेश; एक समय की स्थिति आदि का कथन कालादेश और एकगुण काला इत्यादि कथन भावादेश कहलाता है। दूसरे शब्दों में द्रव्यादि की अपेक्षा क्रमशः द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादेश का अर्थ है। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भा. १ पृ. २१९ से २२१
(क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २४१ (ख) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. २, पृ.८९९

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