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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अतिदूर और न अतिनिकट रहकर वे यावत् पर्युपासना करने लगे।
विवेचन—वैरोचनेन्द्र बलि और उसके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति-प्रस्तुत दो सूत्रों (११-१२ सू.) में वैरोचनेन्द्र बलि तथा उसके अधीनस्थ देववर्ग सामानिक, त्रायस्त्रिंश, लोकपाल एवं अग्रमहिषियों की ऋद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर का निरूपण किया गया है। ये प्रश्न वायुभूति अनगार के हैं और उत्तर श्रमण भगवान् महावीर ने दिये हैं।
__ वैरोचनेन्द्र का परिचय दाक्षिणात्य असुरकुमारों की अपेक्षा जिनका रोचन (दीपन-कान्ति) अधिक (विशिष्ट) है, वे देव वैरोचन कहलाते हैं। वैरोचनों का इन्द्र वैरोचनेन्द्र है। ये उत्तरदिशावर्ती (औदीच्य) असुरकुमारों के इन्द्र हैं। इन देवों के निवास, उपपातपर्वत, इनके इन्द्र, तथा अधीनस्थ देववर्ग, वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहिषियों आदि का सब वर्णन स्थानांगसूत्र के दशम स्थान में है। बलि वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहिषियाँ हैं शुम्भा, निशुम्भा, रंभा, निरंभा और मदना। इनका सब वर्णन प्रायः चमरेन्द्र की तरह है। इसकी विकुर्वणा शक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप तक की है, क्योंकि औदीच्य इन्द्र होने से चमरेन्द्र की अपेक्षा वैरोचनेन्द्र बलि की लब्धि विशिष्टतर होती है। नागकुमारेन्द्र धरण और उसके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति
१३. तए गं से दोच्चे गो० अग्गिभूती अण० समणं भगवं वंदइ०, २ एवं वदासि जति णं भंते! बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए धरणे णं भंते! नागकुमारिंदे नागकुमारराया केमहिड्ढीए जाव केवतियं च णं पभू विकुवित्तए ?
गोयमा! धरणेणं नागकुमारिंदे नागकुमारराया एमहिड्ढीए जाव से णंतत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, छण्हं सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, छहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवतीणं, चउवीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिंच जाव विहरइ। एवतियं च णं पभू विउव्वित्तए से जहानामए जुवति जुवाणे जाव (सु. ३) पभू केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं जाव तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं नागकुमारेहिं नागकुमारीहिं जाव विउव्विस्सति वा। सामाणिय-तायत्तीस-लोगपालऽग्गमहिसीओ यतहेव जहा चमरस्स(सु.४-६)।नवरं संखिज्जे दीव-समुद्दे भाणियव्वं।
_ [१३ प्र.] तत्पश्चात् द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो भगवन्! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?' १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १५७ (ख) स्थानांग, स्था.१०
(ग) ज्ञातासूत्र, वर्ग २, अ.१ से ५ तक (घ) 'विशिष्टं रोचनं -दीपनं (कान्तिः) येषामस्ति ते वैराचना औदीच्या असुराः, तेषु मध्ये इन्द्रः परमेश्वरो वैरोचनेन्द्रः।'
-भगवती, अ. वृत्ति १५७ प., स्था. वृत्ति