Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३५६]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२] एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया।
[३-२] इस प्रकार परिपाटी से (क्रमश:) यावत् स्यन्दमानिका-सम्बन्धी रूपविकुर्वणा करने तक कहना चाहिए।
४. से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव अणगारे णं भावियप्पा असिचम्मपायहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पइज्जा ? हंता, उपइज्जा।
[४ प्र.] (हे भगवन्!) जैसे कोई पुरुष (किसी कार्यवश) तलवार और चर्मपात्र (ढाल अथवा म्यान) (हाथ में लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार भी तलवार और ढाल (अथवा म्यान) हाथ में लिये हुए किसी कार्यवश (संघ आदि के प्रयोजन से) स्वयं आकाश में ऊपर उड़ सकता है ?
[४ उ.] हाँ, (गौतम!) वह ऊपर उड़ सकता है।
५. अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू असिचम्मपायहत्थकिच्चगयाई रूवाइं विउव्वित्तए ?
गोयमा! से जहानामए जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा तं चेव जाव विउव्विंसु वा ३।
[५ प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार (संघादि) कार्यवश तलवार एवं ढाल हाथ में लिये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ?
[५ उ.] गौतम! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को (दृढ़तापूर्वक) पकड़ लेता है, यावत् (यहाँ सब पूर्ववत् कहना) (वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है;) किन्तु कभी इतने वैक्रियकृत रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं।
६. से जहानामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपडागहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्डे वेहासं उप्पतेजा ?
हंता, गोयमा ! उप्पतेज्जा ।
[६ प्र.] जैसे कोई पुरुष (हाथ में) एक (एक ओर ध्वजा वाली) पताका लेकर गमन करता है, इसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी (संघादि) कार्यवश हाथ में एक (एक ओर ध्वजा वाली) पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ?
[६ उ.] हाँ, गौतम! वह आकाश में उड़ सकता है।
७. [१] अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाइं पभू एगओपडागहत्थकिच्चगयाइं रूवाइं विकुवित्तए ?
एवं चेव जाव विकुव्विंसु वा ३। [७-१ प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, (संघादि) कार्यवश हाथ में एक (एक तरफ ध्वजा